पदाम्रत | Padamrat

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Padamrat by कृष्णगोपाल माथुर - Krishna Gopal Mathur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ ॥ (५) सरीत लिख क्था सतदास, वाकी याही रीत। राम कहत अघम तिर्या, यू मेरे परतीत ।१८॥ भरगन जलवे सतदास, वाकौ योही सुभावे 1 राम नाम त्यारे सही, लं कोड भावं म्रमाव ।१६॥ सुमरण कौजे सतदास, दीजै सुरति मिलाय । ररकःर का ध्यान से, मुडे न मोडी जाय ॥२०॥ सतदास ससार के, नाम नाम सब एके । कण सरूपी राम है, कुकस नाम अनेक ।२१। भ्रसत शब्द सु सतदास, गिर तिरीया जल मांहि। जिस दिन तो दूजा शब्दे, लिखिया कोई नाहि ।।२२॥ राम नाम गलतानप्रद. मिले स होई गलतान 1 एही करता सर्प है, ये ही परम निधान ।1२३॥ ररकार श्रनादि ब्रह्य, ये परम धाम विसराम) भ्रौर सवेही सतदास, माया रूपी घाम 1२४ वडा होता क्या वेर है, जो हरि पकड़े हाथ । सतदास लकड़ी वेधी, विन कपल विन पात ।।२५॥ श्राठ पहर विच एक पहर, ञे मुख राम काय । वाको महिमा सतदास, मौपे कही न जाय ।२६॥ श्राठ पहर बिसरे नही, पलक एक ही राम । वाका तो है सतदास, जीवत मुक्ति मुकाम ॥२७।। गोन्ल मे गुजरी तिरी. राम नाम उर धार । सतदास्र साची कथा, देखी सव ससार ।२८1 | इत्ति ॥।




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