स्वाधीनता | Swadheenta

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Swadheenta by महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahaveer Prasad Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ९ इस अनशिज्ञता पर वे लग्जित भी नहीं होते । हां लब्जित इस बात पर वे जरूर होते है, यदि समय का सत्यानाश करनेवाले अपने सित्रमण्डल में बेठकर वे यह न बदला सकें कि अमुक मुंशी साहव, या अमुक भिरजा साहब, या अमुक परडत ( ! ) साहब आजकल कहां पर डिपुर्टी कलेक्टर हैं; अमुक साहब कहां की कलेक्टरी पर बदल दिये गये हैं; अमुक सद्र-आला साहब कब छुट्टी पर जायँगे; अमुक मुनसरिम साहब के लड़के की शादी कहां हुई है; अमुक हेड मास्टर साहब नौकरी से कब अलग होंगे ! एक दिन एक मशहूर जिला स्कूल के हेड मास्टर ने अपने स्कूल के ढोलन (1०11०) का इतिहास वणेन करके हमारे दो घंटे नष्ट कर दिये । पर अनेक अच्छी अच्छी पुस्तकों का नाम लेन पर आपने एक के भी देखने की इच्छा प्रकट न की} इसका कारण रुचि-विचित्रता है । यदि ऐसे आदमियों मे से दस पौच भी अपने देश के साहित्य की तरफ ध्यान दें; और उपयोगी विषयों पर पुस्तकें लिखें; तो बहुत जल्द देशोन्नति का द्वार खुलजाय | क्योकि शिक्षा के प्रचार के बिना उन्नति नहीं हो सकती । और देश मेषी सदी दस पाँच आदमियों का शिक्षित होना न होने के बराबर है। शिक्षा से यथेष्र लाभ तमी होता दहै जव हर गाँव में उसका प्रचार हो । और यह बात तमी सम्भव है जब अच्छे अव्छे विषयों की पुस्तकें देश-भाषा में प्रकाशित होकर सस्ते दामो पर बिके । जापान की तरफ देखिए । उसने जो इतना जल्द इतनी आश्चय्येजनक उन्नति की है उसका कारण विशेष करके शिक्षा का प्रचार ही हे हमने एक्क जगह पढ़ा है कि जिस जापानी ने मिल॒ साहब की स्वाधीनता ( 1.6४ ) का अपनी साषा में अनुवाद किया वह्‌ सफ इसी एक पुस्तक को लिखकर अमीर हागया । थोडे ही दिनों में उसकी लाखें। कापियां बिक गई । जापान के राजश्वर खद सिकाडो ने उसकी कई हजार करापियां अपनी तरफ़ से मोल लेकर अपनी प्रजा को सुप्त म बांट दौ । परन्तु इस देश की दशा बिल्ल दी उलट हे । यहां मोल लेने का घो नाम दी न लीजिये याद इस तरह की पुस्तकें यहां के राजा, महाराजा और अमीर आदमियों के पास कोई यॉही भेज दे, तो भी शायद वे उन्हें पढ़ने का श्रम न उठावें ।




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