दृष्टि और दिशा साहित्यिक निबन्ध | Drishti Aur Disha Sahityik Nibandh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
75 MB
कुल पष्ठ :
710
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द साहित्यिक निबन्ध
से कवि उसी प्रकार निन्दित होता है, जिस प्रकार दुष्ट पुत्र की प्राप्ति से पिता ।”
दोष का सवेधा त्याग कवि का प्रथम कर्तव्य है ।
वामन के टीकाकार गोपेन्द्र त्रिपुरहर भूपाल ने कविता पर बधू का झ्रारोप
किया हैं । उसके श्रद्ध की रूपक-योजना इस प्रकार है --*
कृति वधू
वाक्य पी ग्र
गुम्भ मूति
वस्तु -- दिर
ग्रलंकार - परिष्कार
रीति प्राण
गुर गुर
बामन ने रीति को ही काव्य की आत्मा कहा है परन्तु टीकाकार ने रीति को प्रांगा
स्वीकार किया है ।
कवि : व्युत्पत्यथ--राजशेखर ने “कवि ब्द पर भी विस्तृत विचार किया
है 13 उनकौ मान्यता के ्रनुसार कवि का कर्थं ( कृति ) ही काव्य है ।* राजशंखर
ने कवि शब्द की व्युत्पत्ति क्व् (क्वृयाक्वृ) धानु से मानी है । इसकी व्युत्पत्ति
के सम्बन्ध में एक श्रौर मत है : कुड (शब्दे ) धातुम (इ) प्रत्यय करके यह्
दाब्द व्युत्पन्न हुमा है । “कवृू' धातु का श्र्थ है “वर्ण । वेगं रंगवाची है । वर्ण से
वर्णन अर्थ हो सकता हैं । राजशेखर ने इसी रथ में इसका प्रयोग किया है । वणं
के थे झ्रथ॑ हो सकते हैं : रंग, रंगना, विस्तार, गुण, कथन, वर्गान, स्तुति, भ्रक्षर,
स्वरूप झरादि ।* वेसे कवि के लिए दाब्दाथक “कु-धातु श्रौर वर्गाथिक “कबृू-दोनों
ही उपयुक्त हैं । शब्द की अ्रपेक्षा वर्णन वाला प्रथं ही श्रधिक उपयुक्त टै)
कवि : प्रयोग-परम्परा--ऋषग्वेद में “कवि शब्द प्रत्यन्त व्यापक प्रथं मे प्रयुक्त
है ।° वेदिक कवि' ऋषि था, प्राप्त था; मेघावी था । स्वयंभू परमेश्वर मनीपी श्रौर
१. तदल्पमति नोपेदयं काव्ये दुर्ष्ट॑ कर्थचन 1
विलबमणा हि काव्येन दुम्ुतेनेव निन्यते ।। काव्यालङ्कार, १।११
२. काव्यालङ्कार सूतरषृत्ति कौ रीका : प्रस्तावना ।
२. (कवि शब्दश्च क्र वै इत्यस्य धातोः काव्य कर्मणो रूपम् ।
काय्यैक रूपत्वाच्च सारस्वतेयेऽपि काव्यपुरुष इति भक्त्या प्रथुव्यते ।'
४. कवेभीवोऽथवा करम काव्यं तज निरुच्यते । जिनतेन, महापुसस्, १।६४
५. उणादि प्रकरण के कच् इः? (४। १३८ ), इस सूत्र से “इ” प्रत्यय । ुढधातुम्वादि
गण मेँ परित है । अदादि तथा वेदादिगण में क्रमशः कु तथा कुड धातु शब्द”
झ्र्थ में पठित है ।
सिद्धान्त कौमुदी, धातु पाठ तथा श्रमरकोष, नानार्थवर्ग; इलो० ४८ ।
७, कवि शशासुः कवयोऽदन्धाः । ऋक. ४।२।१२
कविः कवित्वा दिवि रूपभास्तजत् । १०।१२४।७
कविमिव प्रचेतस्तं यं देवासः । ८।८५।२
हन्द्रमग्नि कविच्छदा । ३।१२।३
त
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