कवित्त - रत्नाकर | Kavitt Ratnakar

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Kavitt Ratnakar by उमाशंकर - Umashankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क वत्त-रल्ाकर तथा मद्ददम-पट्टी की चर्चा वचन-वक्रता बड़ी सुन्दर होती है किंतु वह फारि फारि खाए बिना भी प्रदर्शित की जा सकती थी । खंडिता के झन्प उदा- दरों में श्रघिक सदहदयता से काम लिया गया है । से बचन-विदर्घा के वणन में कभी कभी व्यंजना से झपूव सद्दायता मिलती है पर सेनापति ने इसके बणुन में प्रायः श्लेघालंकार से सहायता ली है । इसके कुछ उदाहरण पहली तरंग में मिलते हैं श्रौर उनमें शाब्दिक क्रीड़ा की ही प्रधानता है | किसी किसी छुंद में श्रश्लीलत्व दोष भी श्रा गया हे । श्रश्लीलत्व के संबंध में यद कह देना श्रप्रासंगिक न होगा कि वह सेना- पर्ति के श्रज्ार-वणुन में बहुत कम पाया जाता है । वद्द केवल पहली में ही कतिपय स्थल्लों पर देखा जाता है। कवि वहाँ पर श्लेघ लिखने में तत्पर दिखलाई पड़ता है श्रतएव उसे श्रन्य किसी बात की चिंता नहीं रददती है । दीं कहीं श्लेष का मोह इतना प्रबल दो जाता दै कि उसे भद्दी से भद्दी बात कह देने में भी संकोच नहीं होता दे । ऐसी हो भद्दो तथा रसाभासपूरण उक्तियों को देखकर श्राजकल कुछ शिक्षित तथा शिष्ट किन्तु साहित्य से अधिक परिचित न रहने वाले व्यक्ति श्वड्ार रस को उपेक्षा को दृष्टि से देखा -करते हैं इनमें से कोई तो कुछ जम्नता के साथ उसका विरोध भी करते हैं रोतिकाल के श्रन्य कवियों की भाँति सेनापति ने भी परकीया का ही विशेष चित्रण किया है किन्तु वे स्वकौया की मददत्ता को भी स्वीकार करते थे | रामायण वणनः में उन्होंने राम के एक नारी-घ्रत पर बहुत ज्ञोर दिया है श्रौर बड़े उत्साह के साथ दाम्पत्य रति का चित्रण किया है दूसरी तरंग में भी जहाँ कहीं उसे चित्रित किया गया है वहाँ अपूव सफलता मिल्ली दै। प्रौढ़ा स्वाधीनपतिका के इस बणुन में स्वकीया की सुकुमार भावना को देखिए--- फूलन सो बाल की बनाइ गुद्दी बेनी लाल भाल दोगी बेदी सगमद की झसित है । झग अंग भूषन बनाइ अज-भूपन लू बीरो निज करके खबाई झति दित है ॥ दल नस्ल रन ₹ पइली तरंग छंद ७१ ७०४ ८१. न २ पदली तरंग छंद 5४ १०




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