योजना | Yojana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रारम्भ च्
तो में ऐसी तालीम दूं कि वे बचपनसे ही तूफान नहीं करना
विध्वंस नदीं करना, यह सीखें । लेकिन जो कुं करे वह सृजना-
त्मक हो, इसी में कला है । .
में यह नहीं मानता कि ववे जन्मसे श्रच्छैया बुरे दोते हैं ।
. हाँ; स्वाभावमें तो जरूर कुछ भिन्न होते दै, लेकिन उसे तो हम
ठीक करेंगे ! इससे ज्ञात होता है कि जब बच्चा माँ के पेटमें आता
है तभीसे.उसकी तालीम शुरू दोती है। इसी पर प्रौढ रिक्ता
खड़ी दै । प्रौदोंके संस्कार बच्चों पर पढ़ते हैं । बच्चेका संस्कार भी
वहींसे शुरू होता है । बच्चेके हाथ 'पैर हरदम दिलते डुलते
रहते हैं रौर समय पर वहं श्रपनेसे छुक न कुछ करता रहता
है । उसे यह् पता नहीं होता छि वह क्या कर रहा है लेकिन
उसकी हरेक क्रिया रचनात्मक रहती ह, विष्वं सक नहीं ।
दो-ढाई सालके वच्चे हमारे हाथमे श्रावे ओर अपने हाथ
पोवि हमारे बताए रास्तेसे इस्तेमाल करें तो ये कहाँ तक जायेंगे,
मे उसकी हृद नहीं बाँध सकता । उन्हें मारकर नहीं, बल्कि प्रेम से
ही सिखाना है ।
सिखानेकी मेरी पद्धति तो यह ्ोगी फर पहले रंगोकी पद्-
चान कराकर चित्रे शुरू करे 1 अन्तर भी तो चित्र ही होते हैं ।
कोई तोतेका चित्र बनाएगा, कोई सूतका, ओर कोई अक्तरका ।
इस प्रकार सबके अलग-अलग चित्र होगे। लिखना चित्र हार शुरू
किया जाय । १,२, अलीफः वे, य, श्रा जादि चित्र रूपम सिखाया
जाये । जव वे अक्षर चिच्र रूपमे सीखंगे तो अरलगसे उन्द सिखाने
की झावश्यकता नददीं होगी । पहले थे या १ का चित्र सीखें,
- सव अन्तर चिन्नमय हो जायें, तब उनका क्ञान दिया जाय । “थी
मास नादमें श्यावेंगे । आजकी तरदद “थी श्ञासे” नहीं सिखाए
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