गुलेरी रचनावली | Guleri Rachanavli
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
362
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका / १५
और हिंदी की पत्र पनिकाओ में विद्वतापूर्ण आयेख लिखकर योगदान किया है 1
सेरे लेखी की विशिष्ट प्राच्य विद्याविदो ने प्रशसा की है ।'' मैंने प्राचीन एव
आधनिक गय तथा पद्याहमन हिंदी-साहित्य का अच्छा अध्ययन किया है और
पाली, प्राइत तथा अपभ्रश भाषाओ से उसके विवास के बारे मे भी अनुशीलन
क्या है। इतिहास और पुरातत्व बिपयो मे मेरी अभिरुचि है और मेरे अपने
नाम से, बिना नाम से या अन्य विद्वानों के साथ जो लेख आदि प्रकाशित हुए
हैं, वे सवंविदित ही हैं।”
समकालीमो को दृष्टि मे
गुलरी जी ने उवन शब्द अपने बारे मे लिखे है । इन शब्दा को मैं उन लोगो
के लिए विशेष रूप से उद्धृत कर रहा हु जो मात्र यही जानते हैं कि गुलेरी थी
ग्उसने कहा था” कहानी तथा 'कछुआ घरम' और “मारेसि माहि कुठासे' प्रभृतति
निवव लिखबर ही जरूरत से ज्यादा नाम कमा बैठे हैं । ऐसा आचार्थ रामचद्र
णक द्वारा “हिंदी साहित्य का इतिहास मे आई गुलेरी जी की प्रशसा से भी
हुआ है । चायं शुक्ल ने “गुलेरी-चर्चा' में जो कुछ लिखा उसे मात्र इन्ही तीन
रचना तक सीमित रखा गौर उनका विपुल कृतित्व जने-अनजाने “वार्नेर हो
गया । इस सदी के पहले, दूसरे तथा तीसरे दशके कौ प्रतिनिधि पत्र प्िकाभौ
कौ उलटने-पलटने पर ज्ञात होता है कि गुलेरी जी तथा शुक्ल जी साथ-साथ
छपते रहे है । अत्त विश्वास नहीं होता कि उनकी शेप रचनाए शुबल जी की
नज़र से चूक गई हो । स्पप्ट है, 'कण्ठा' और “शब्द कौस्तुभ का कण्ठा' (१९१९६-
२० ई०) छदूमतामो से छपे उनके उक्त दोनो निवधो का सघान बर लेने थाले
शुक्ल जी उनके स्पष्ट नामो के साय छप आँख, 'देवकुल', 'अमगल के स्थान में
मगल शब्द”, 'सस्कृत की टिपरारी', “शशुनाकं की मूतिया^ कभी को मीद भौर
काशौ के नूपुरः, सगीत , देवाना प्रिय , ज्यासिह प्रकाश , पृथ्वीराज महा-
काव्य , य वैन्य का अभिषेकः, “गुन शेप की कहानी , “राजसूय, तया “आचार्य
सत्यन्रत सामथमी ' प्रभूति दर्जनों कृतियो वो भी तब नजरअदाज कर गए जबकि
उनके समवालीन विद्वान उन्हे डिंदी की शक्ति को बढाते रहने के लिए बराबर
प्रेरित कर रहे थे ।
इस सदभ में यहा तीन विद्वानों द्वारा गुलेरी जो को लिखे पो के महत्वपूर्णं
अश उद्धृत करना समीचीन प्रतीत होता है--
१ “अनुवाद में भी और स्वतथ्र लेख में भी भावों को प्रकाश करने के लिए
कृटिन सद्टृत शब्दों का प्रयोग करना पडता है। मुझसे भी सरल भाषा नहीं
लिखते वनती, भापसे भी नहीं । लेकिन फिरभी यत्न कर रहा हू, आप भी
कीजिए भौर जहा त्तत हो सके सरल मापा वै तदुभव शब्द और उन फारसी-
हि
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