आवश्यक - दिग्दर्शन | Aavashyak - Digdarshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अमर चन्द्र जी महाराज - Amar Chandra Ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मानैव जीवन का महत्व द
मतो सदीशरत्सु सवणे शलो;
भवेषु मनुष्यमवः प्रधानम् ॥
--( श्रावकाचार १। १२)
महाभारत में व्यास भी कहते हैं कि “ाओ, मै व॒म्दें एक रदस्य
की बात बताओ} यह अच्छी तरह मन में दृढ़ कर लो कि संसार में .
मनुष्य से बढकरं श्रौर कोई श्रेष्ठ नहीं है ।”
गुह्य ब्रह्म तदिदं श्रवीमि,
नहि मानुषात्
भ्रष्ठतरं दहि किचित्]
--महाभारत
वैदिक धर्म ईश्वर को कर्ता मानमै वाला संपदायदहै। शुकदेव ने
इसी भावना में, देखिए, कितना सुन्दर वर्णन किया है, मनुष्य की सब-
श्रेष्ठता का । वे कहते है कि श्वर ने अपनी श्रात्म शक्ति से नाना
प्रकार की सृष्टि दक्ष, पशु, सरकने वाले जीव, पत्ती, दंश आर मछली
को बनाया । किन्तु इनसे वह तृप्त न हो सका, सन्तुष्र न हो सका ।
श्राखिर मनुष्य को बनीया, श्रौर उसे देख श्रानन्द मै मय हो
गया | ईश्वर ने इस बात से सन्तोप माना कि मेय श्रौर मेरी खष्ि
[४ म मने वाला मनुष्य ज्व तैयार हो गया दै।
भारतीसझ-पुराखि, विविधान्यजया55त्मशक्त्या,
- ˆ ` बृत्तान सरीखपं-पशुन् खग-दश-मत्स्यान्।
माक टी. व मुजं विधाय,
कि ननह्यावयोधयि मुदमाप देयः ॥
कि भ प -“ -मागवत
= व ^, स्थान पर इन्द्र कह रहा है कि भाग्यशाली है वे
जो दो हाथ वाले मष्य दै । मुके दो हाथ वज्ञे मनुष्य के प्रति खहा है ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...