विश्राम सागर | Vishram Sagar
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42.15 MB
कुल पष्ठ :
704
श्रेणी :
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No Information available about पं ज्वालाप्रसाद मिश्र - Pn. Jvalaprsad Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कथाप्रसंगवणन-अ० (११)
| सुखदुख स्तगनरकके भेदा। गमनागमन कहो विधिनेदा ॥ |
/ माया ब्रह्म जीव गति नाना । हरिहरजनके चारित महाना ॥
। अजअव्यक्तमनादिअकाया । केद्विविषि सगुण भये सुरराया ॥ |
| चारिखान जग जीव कहाये । उत्पततिलयपालन कविगाये ॥ |
| योग यज्ञ जप तप ब्रत दाना । वर्णाध्रमके भेद महाना ॥ |
| मित्र मित्र अब आएबसानडु। हमें सदा अठुगामी जानहु॥ |
। शाख्र विना नाहिं सपनेहु ज्ञाना । ज्ञानयिना नहिं भक्ति बखाना ॥ |
यक्तिथिना सुख दोय न कबहीं । ताते हम व्णहु यह सबही॥ |
सो शिरमार सदशहे भारी । दरिगुणचरण न ने विचारी ॥ |
। जो नहिं सुने ईश गुणब्रामा । सोश्तिअहिविलसमदुखधामा ॥ |
| नेन जो हारिदर्शन नहिं करहीं । मोरपंखसम कवि उच्चरहीं ॥ |
| जो कर हरिसेगा नहिं करहीं । तेमलछिप्त पाए नित धघरही॥ |
। जो'जिह्ा नहिं दरिगणकरई । सो दादुर सम निश्चय अहई॥ |
| जेपगनहिं तीरथहित जाहीं। जानहु सो स्तंभ सदाही॥ |
| नहिं आई । सो शवसम जानहु भयदाई॥ |
दोहा-यहि तलुकर फल जानिये; जब उपजै हारिमक्ति। |
महिमा सुनिये गाइये; पहये. निश्चय सुक्ति॥ |
। सुनिअस वचन पायों । वेदव्यासपद पुनि शिरनायों ॥ |
कड़े क्षणमगन सु्ददे नैना। पुनि बोले ऋषिसे शूदुबेना ॥ |
प्रश्न ठुम्हार सुदावन । कहत सुनतजगकोकरपावन ॥
| चन्य घन्य हुमसुनिवडमागी । कीन्हेउ प्रश्न जगतरितिछागी ॥ |
दर्टििकया जगतसुखदेनी । अवनाशन सुरलोकनिसेनी ॥ |
| मदामोदतमनाशनकारी .. । भक्तन देत पदारथ चारी॥ |
। अभिमतदाता । गुरुपद्रजसम झत अवदाता ॥
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