संसार को चुनौती | Sansar Ko Chunauti
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
139
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सब विभूतियाँ आपको प्रास हैं ५
है और आप की उन्नति के लिए यह अतीव आवश्यक है कि झाप इस
हीन विचार-घारा को तुरन्त त्याग दें ।
श्राप मनुष्य हे, जो संसार के सव जीवों का सिरमौर है ।
मनुष्य से परे और सुन्दर, सशक्त, उत्तम जीवन इस संसार में
नहीं है । मेरे लिए सचुप्य से परे कोई भाव नहीं; कोई विचार नहीं ।
मनुष्य और केवल मनुष्य ही दुनियाँ की सारी वस्तुओं और विचारों का
स्रष्टा हैं । चह झसंभव को संभव बनाने वाला और प्रकृति की सम्पूणं
शक्तियों का भविप्य में होने वाला एक मात्र अधिकारी और मालिक
हैं । फिर निराशा क्यों ?
मनुष्य होने पर गर्व कीजिए और दूसरे मनुष्यों को सेवा, सहयोग
दीजिए एवं प्रेम कीजिए ! ेसा करने से आपकी ्ात्मीयता का दायरा
बढ़ जायेगा और झानन्द के खोत खुल जायेंगे ।
दूसरों की उन्नति की सराहना कीजिए; भरपूर प्रशंसा कीजिए ।
प्रशंसा से मनुष्य की गुप्त झात्मिक और मानसिक शक्तियाँ विकसित
होती हैं । परमावश्यक यह हैं कि यह सराहना का कार्यक्रम आप स्वयं
अपने से ही ग्रारम्भ करें ।
प्रत्येक घामिक तथा उत्साहवद्धक साहित्य बताएगा कि आप एक
शक्ति-सम्पन्न, देवी विभूतियों के स्वामी व्यक्ति हैं और आप का व्यक्तित्व
अभूतपूर्व, एक मात्र अस्तित्व है ।
कोई अन्य व्यक्ति आपके समान नहीं है । जो विभूतियां आपको
प्राप्त हैं, वे दूसरों के पास नहीं हैं । अपनी इन्हीं युप्त शक्तियों को
पहचानो और विकसित करो !
उदीध्वं जीवो असुने आगादप प्रागात्तम आ ब्योतिरेति ।
आरेकू पन््थां यातवे सूयोयागन्म यत्र प्रतिरन्त आयुः ॥
(ऋग्वेद १-११३,१६)
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