श्री वृन्दावनलाल वर्मा की उपन्यास कला | Shri Vrindawan Lal Verma Ki Upanyas Kala

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Shri Vrindawan Lal Verma Ki Upanyas Kala by रामचरण महेंद्र - Ramcharan Mahendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ श्ट ) सन ओ सवनी शुष्य निति चियेचन के श्या जाने से दाद ना पाएगा कम हो जाता ॐ श्योर तन्मयता एवं उत्सुकता का प्रचाद टूट ज्ञादा है | इन सिष्टशों पढ़कर सत्यालीन सामाजिक एवं राजलैतिक टशा पा न्द्ध स्मन ४ जाता है, पर उपन्यास सरीखा भ्नाकपरण म्यते जाता मै 1 क खटः स्थानीय ऽतिष्नाय कै प्रिरिष सगय भारत कौ ततिः , दामि पप्टसूमि पर दरम्दि गमने दी चेष्टा की गड द । इससे इति- हास का पत्तिविस्त 'सार्यर्यशलक रूप मे द्री पडना है, पर पाठक सिरन्तर यह सोचता हैं कि से शुप्क विदेचन पंच समाप्त हो, श्वं सथाम हो । चह्ठ इसमें ग्ल नहीं ले पाना | नर्मा जी ने भूमिकाओं में सहायक इतिटास पएम्त्खेः डं प्रलेन्यो { 00तणणालछपट ) रौर प्राचीन उन्लेत्यो ( 1२७८०१५} दत मी उल्लेख कर दिया है । यह्‌ उनकी इतिहारा वी सत्यता का प्रमाण है । बुन्दे्तखण्टी जीवन के सार्मिक चित्रों का उद्घाटन चुन्वैलखरट्‌ के जीवन, पेलिद्टाभिक, किलल, भीतरी स्थानों, मंदिरों, गढ़ियों, चित्र कारी, पुराने सहलों, समीप के जंगलों, प्रसिद्ध नगरों : तथा तीथे स्पानों, संस्कृति श्मौर भाषा के प्रति चमी जी के ह्रदय मः शत्यधिक 'अनुराग है 1 श्याण्के श्रधिकतर गतिदासिव उपन्यास लुन्देलखरड प्रान्त से सम्यस्थित है । कुदार वी. गढ़ी ( रढ़-कुरडार )) चान्कोरी कर जिस, हतरफुर की टॉरिच्य, सँसी का किला, कांसी की रानी के महल की चित्रमा, नसवर का चिल, धामानि फा क्रिला तथा अनेक बुन्देलखरुड भे स्थानो तथा प्राकृतिक श्यो, जंगलो, चन्त और बावड़ियों का बड़ा सजीच चिन्नण किया है । ऐतिहासिक, भोगी- लिंक; 'माधिक अलस्पाष्मों तथा सामनती युग को वर्मा जी ने जीता- जागता प्रस्तुत कर दिया हू । इनके उपन्यासों का झष्ययन कर




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