संसार को चुनौती | Sansar Ko Chunauti

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Sansar Ko Chunauti by रामचरण महेंद्र - Ramcharan Mahendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सब विभूतियाँ आपको प्रास हैं ५ है और आप की उन्नति के लिए यह अतीव आवश्यक है कि झाप इस हीन विचार-घारा को तुरन्त त्याग दें । श्राप मनुष्य हे, जो संसार के सव जीवों का सिरमौर है । मनुष्य से परे और सुन्दर, सशक्त, उत्तम जीवन इस संसार में नहीं है । मेरे लिए सचुप्य से परे कोई भाव नहीं; कोई विचार नहीं । मनुष्य और केवल मनुष्य ही दुनियाँ की सारी वस्तुओं और विचारों का स्रष्टा हैं । चह झसंभव को संभव बनाने वाला और प्रकृति की सम्पूणं शक्तियों का भविप्य में होने वाला एक मात्र अधिकारी और मालिक हैं । फिर निराशा क्यों ? मनुष्य होने पर गर्व कीजिए और दूसरे मनुष्यों को सेवा, सहयोग दीजिए एवं प्रेम कीजिए ! ेसा करने से आपकी ्ात्मीयता का दायरा बढ़ जायेगा और झानन्द के खोत खुल जायेंगे । दूसरों की उन्नति की सराहना कीजिए; भरपूर प्रशंसा कीजिए । प्रशंसा से मनुष्य की गुप्त झात्मिक और मानसिक शक्तियाँ विकसित होती हैं । परमावश्यक यह हैं कि यह सराहना का कार्यक्रम आप स्वयं अपने से ही ग्रारम्भ करें । प्रत्येक घामिक तथा उत्साहवद्धक साहित्य बताएगा कि आप एक शक्ति-सम्पन्न, देवी विभूतियों के स्वामी व्यक्ति हैं और आप का व्यक्तित्व अभूतपूर्व, एक मात्र अस्तित्व है । कोई अन्य व्यक्ति आपके समान नहीं है । जो विभूतियां आपको प्राप्त हैं, वे दूसरों के पास नहीं हैं । अपनी इन्हीं युप्त शक्तियों को पहचानो और विकसित करो ! उदीध्वं जीवो असुने आगादप प्रागात्तम आ ब्योतिरेति । आरेकू पन्‍्थां यातवे सूयोयागन्म यत्र प्रतिरन्त आयुः ॥ (ऋग्‌वेद १-११३,१६)




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