जड़मूलसे क्रान्ति | Jadmoolse Kranti

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Jadmoolse Kranti by किशोरलाल घनश्यामलाल मारारुषाला - Kishorlal Ghanshyamlal Mararushala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घार्मिक फ्रान्तिका सवा ७ या मशिनसे शादी कके मभीका धन्धा करने लो; तव जिसे ' जूता कहाँ कायता है” जिस बातका जो अनुम्ब दोगा, चह इमे नदीं दहो सकता । हमारी सारी कौशि अपने दिन्दुत्व; त्राहाणसे वराको सुःश्वित्त रखकर दूसरकि साथ मेछ बैठानेकी दोती है । शुनके गैरहिन्दू और भेखाक्षण होनेकी भावना इमरि दिमारसे दूर नहीं हो सकती ) ओक दिन नागपुर जेप मेरे अकं साथी श्री बरावाजी सोघे पिछड़ी हुआ जातिर्योकी सेवा और शुनके सुद्धा वरिम 'ुद्चसे चचा कर रहे थे । चचकि दौरानमे झुनके मुँहसे मराठीमें नीचे लिखे आदययका वाक्य निकल पड़ा: “ कभी वार सुझे भैसा लगता है कि जिन लोगेकि वहम आर अश्रद्धा दूर कलेके रिम भिन्द मुसलमान हो जानेक़ी सलाद देनी चाहिये ! ” श्री बावाजीके हसे यह विचार निकलना बहुत सोचने जेसी बात है । जिसका मतलब यह हुआ कि खनको यदह विद्वासं टो शया है कि दिन्दू-चर्म्के बजाय निस्म्प वहम ओर अन्धश्रद्धाओंकों दृदानेकी शवित ज्यादा है । ओर यदद बात बहुत इृद तक सच भी है । लेकिन यह भी समस्याकां सन्वा ईर नदीं हे 1 क्योकि सिस्छाम मी भ्रमो -- वहर्मो- उन्धश्रद्धाओं और संकुचिततासे परे नहीं है और न आजी मानवी समस्यार्ओंकों दल करनेमें समर्थ है । साथ दी पूरे छुरानको जेसेका तैसा स्वीकार नहीं किया जा सकता । अगर हम खुद सिस्छाम स्वीकार करलेके लिखे तैयार नहीं हैं; तो किसी दूसरेको यदद सलाह कैसे दै सकते दै श ओर जिस्लामन सरलता ओर सीधी शि होते हओ भी वहुतसी असी वाति है, भि हमारी विवेवशद्धि स्वीकार नदीं कर सकती । यदी हाक ओसाजी वैरा धमौका दै} हम, दन्द रोण, जिन्दणीमर अक अजीब किस्मकी बीद्धिक कसरत कलेके आदी हो शयेर) अक तरफते हमारी फिलॉसफी उेठ अद्रैत वेदांतफी है । विस रम बुद्धिको रखकर जव हम विचार करते हैं, तो . इनिया झूठी, देव झुठे; गुरुणिष्य झुठे, विधि-निषेघ झुठे, पाप पुण्य दे, नीति-मनीति, दिंसा-अई्दिसा, सत्य-दयुठ सबको झूठे झुठे कद डालते हैं । और जिससे निकेख्कर जव दूसरी रपर चलते दै, तो शोजदेवता, श्रामदेवता, गुरुदेवता, पितृपूना, ग्रदषूना, अवतारमक्ति, अलग /अलग स्योहारोकी




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