कबीर साहित्य और सिद्धांत | Kabir Sahitya Or Sidhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कीर की जीवनी ५
की जन्म-तिथि सं° १४५५ मान लेने पर मृत्यु-तिथि ठीक १५७४ निश्चित दो
जाती है । कवीरदास जेसे योगी की द्रायु १२० वर्ष मानलेने में भ्रम करना कुछ
युक्ति-संगत प्रतीत नहीं होता, जब कि श्राज के युग मेँ भी ११० वे के वृढ व्यक्ति
भारत में मौजूद हैं ।
हम क्ीरदासजी की सृत्यु-तिथि सं० १५७५ ही प्रामाणिक मानते हैं ।
कबीर पंथियों मे इस विपय मे एक दोदा मी प्रचलित हैं ।*
कवीर् का नाम
महाकवि कबीर के नाम के विपय में श्रम का कोई कारण हमें प्रतीत नहीं
होता । कबीर नाम सर्वमान्य हैं । क्या अंत: साक्ष श्र क्या बहिर साक्त, सभी जगह
हमें कवीर नाम का ही प्रयोग मिलता है । भक्तों की रचनाश्रों में, ऐतिहासिक
उल्लेखो मे, स्वये कवीर् की रनाग्रो में तथा किंवदं तियों में--सभी स्थानों पर 'कबीर'
नाम को ही झ्पनाया गया है । परन्तु “कबीर” शब्द के साथ “साय” और दासः
का प्रयोग कहीं;कहीं पर किया गया है | इसके विपय में पाठकों को यहाँ इतना
ही जानलेना व्रावश्यक है कि (तादवर' शब्द् का प्रयोग प्रनित्त है ग्रौर इसरा प्रयोग
भक्त लोगों ने श्रपने गुरु को आदर देने के लिए किया होगा । कच्ीरदासजी ने स्ै
द्मपने लिए (साहः शब्द् का प्रयोग जरिया होगा यह युक्ति-संगत नदीं यहरता ।
उन्होंने तो ग्रपने लिए दाक्तः शब्दका ही प्रयोग किया दोगा । वो साधारणतया
करीर ने केवल “कबीर” शब्द का ही श्रपनी रचनाश्रों में प्रयोग किया है, परम्तु
यत्र-तन्र 'ढात' का प्रयोग भी मिलता है ।* कवीर दास जी ने अपने लिए, ्धिकांश
स्थानों पर 'कविरा” नाम का भी प्रयोग किया टै | इस प्रकार जहाँ तक नाम का
सम्बन्ध है-हमें अधिक भ्रामक सामग्री इतत विधय में नहीं मिलती श्रौर कवि का
नाम “कबीर ही सर्वेमान्य तथा स्पष्ट है ।
कवीर की जाति, जन्म तथा सृत्यु के स्थान
जिस प्रकार कवीरदासजी के नामके विपय में कोई संदिग्ध या भ्रामक विचार
नहीं हे उसी प्रकार उनकी जाति के विषयमे भी दमे द्रो मत नदीं मिलते | कवीर
१. (१) सम्वत् पंद्रह से पद्ठत्तर, कियो मगहर गौन । .
माघसुदी एकादशी, रही पवन में पौन ॥
२. (१) दास जुलाहा नाम कबीरा, वनि-चनि फिरों उदासी ।
(दाग, प०२७०)
(२) दास कवीर चदे गज ऊपरि राज दिथौ प्रविनासी । --( बही)
(३) सुखिया सत्र संसार है, खयै श्रु सोवे ।
दुखिया दास कबीर दै, जगे श्र रोवे ॥। --( साखी )
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