प्राणायाम - विज्ञान और कला | Pranayam Vigyan Aur Kala

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Pranayam Vigyan Aur Kala by पीतांबरदत्त बड़थ्वाल - Pitambardutt Barthwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कर सकते । उनका मत है कि रोगी के लिये नियमबद्ध परि- श्रस के साथ साथ विश्राम भी बहुत आवश्यक है। खास कर भाजन के पहले एक घंटा शरीर बाद को भी कुछ समय जरूर झाराम करना चाहिए। संपूर्ण अंगां को टीला करके चिंत लेट रहने से या तकिए के सहारे अथवा आरामऊुर्सी पर बैठ रहने से सबसे अच्छा झाराम सिलता है । वे और डा ० अआटेब इस बात में सहमत हैं कि दिन में तीन बार खाना चाहिए । डा० मुथु बजे सुबद्द १ बजे दोपहर को श्रार ७ बजे शाम को अपने रोगियों को भाजन कराते हैं । भाजन जितना सादा हा उतना ही अच्छा । वे दवा के व्यवहार के पक्षपाती नहीं हैं । वे झ्रपने रोगियों को तभी दवा देते हैं जब वे समभते हैं कि बिना दवा दिए काम नहीं चलेगा । दवा अक्सर प्रकृति के आरोग्य-निर्माथकाय में बाघा डालती है । डाक्टर झ्राटेब ने कुछ दशाएँ बतलाइ हैं जिनमें प्राखा- याम का अभ्यास लाभकारी नहीं होता । इसका कारण यही है कि ऐसी दशाओं में फुफुस इतने निबेल होते हैं कि उनका व्यायाम करने से उनको क्षति पहुँचती है। परत मन की शांति ऐसी दशा में भी अपेक्षित है श्रोर वह भी विशेष रूप से। ऐसे लोगों को तकिए के सहारे अथवा अझरासकुर्सी पर सुख से बैठकर निष्क्रिय हेकर अपने श्वास-कमे पर विचार करना चाहिए । यहद्दी उनके लिये काफी प्राशायाम होगा | बार कारणों से भी जा कोई प्राणायाम न कर सकें उन्हें भी




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