सूर्य - सिद्धान्त भाग १ | Surya - Siddhaant Part 1

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Surya - Siddhaant Part 1 by महावीर प्रसाद श्रीवास्ताव - Mahaveer Prasad Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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करके हमारी सपझ में सारी गणना का बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंश छोड़ दिया गया त ही महत्वपूर्ण परिणाम निकलता है । लेकिन हमारे जिद्धान्त के बारे में यथाथे बात क्या है ? हमें यह मिलता है कि इसमें ग्रहों # ऐसे ध्लुवाड़ु दिये गये हैं जिनके स्थानों की भुलों की परीक्षा ऊपर बतलायी हुई रीति ने करने पर जान पढ़ता है कि इन ध्रवाड़ों का निश्चय इस विचार से नहीं शिया गया है कि छिसी निर्दिष्ट काल में इनकी यथाथे नाक्षप्लिक स्थिति जानी जा सहे । बल्कि इसके प्रतिकूल ये ऐसी गवाही देते हैं कि ईसा की १० वीं या २१वीं सदी में इस बात का प्रयत्न किया गया है कि ग्रहों की स्थिति सूर्य की स्थिति की तुचना में ठीक-ठीक जानी जा सके । इसका भी ठीक-ठीक समय संदेहात्म9 है क्योंकि. उन समयों में बड़ी भिन्नता है जिनमें अशुद्धि शुन्य समझी जाती है । संस्कृत साहित्य के इषिहास में यह बात उतनी ही ध्रुव है जितनी कोई बात हो सकती है कि उस समय से बहुत पहले सुयं-सिद्धान्त का अस्तित्व था । अन्य ज्योतिष के ग्रत्थों के विदंगों और उद्घरणों से इस बात का भी पत्ता चलता है कि इप चाम के ग्रन्थ के कई पाठान्तर थी थे और हम ऊपर श्लोक ८ में यह देख थी चुके हैं तो बहुत भस्पष्ट सूचना नहीं है कि वर्तमान ग्रन्थ में ठीक-ठीक वही घ्लुवाड़ु नहीं दिये गये हैं जो पहले सूयं-सिद्धान्त के माने गय्रे थे । इसलिए इस अनुमान फे निकट भर क्या हो सकता है कि १०वीं या. ११वीं शताब्दी में संशोधन के लिये बीज बी जो गा को गयी थी यह मूल सें केवल चार या पाँच श्लोकों को बदल कर खपा ही पयी । इसलिये जबकि दूसरे ग्रहों की तुलनात्मक अशुद्धियाँ उस समय का निंदश करती है जब यह बीज संस्कार किया गया था सूर्य की निरपेक्ष अशुद्धि सुन पुस्ठर हा प्राय सच्चा समय प्रकट करती है । हमारे कॉण्ठक में सूर्य की शून्य अशुद्धि का समय २५० ई० है । इस तारीख को अशुद्धता के लिये बहुत जोर दने की आवश्यकता नहीं क्योंकि यह उस बेध की शुद्धता पर निरंर हैं जिसवे सूर्य हा स्थान पहले-पहल निश्चय किया गया और फिर उस विस्दु ४ निर्देश किया गया. जिसको आकाश चक्र का आदि विन्दु कहते हैं । कोरी आँख से इसका वेध करना असंभव था कि सूर्य का केन्द्र मध्यम गति के अनुसार रेवती दे योग तारा द्रहा8 ांइ्थंण्णा के दस कला पूव॑ कब था और यह तो स्पष्ट है कि हिन्दुरों न इस बिन्दु मे राशिचक्र के अन्य विन्दुओं का जो लिश्चय किया है उनमें बड़ी-बड़ी भूलें हैं और यदि सुर्य के स्थान के निश्चय करने में एक अंश को भी झुल हो जाय तो इससे शुन्य अशुद्धि के काल में ४२४५ वर्ष वा अन्तर पड़ सकता है |




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