हिंदी वीरकाव्य - संग्रह | Hindi Virkavya Sangrah

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Hindi Virkavya Sangrah by उदयनारायण तिवारी - Udaynarayan Tiwariपं गणेशप्रसाद द्विवेदी - Pt. Ganeshprasad Dwivedi

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पं गणेशप्रसाद द्विवेदी - Pt. Ganeshprasad Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० हिंदी वीरकाव्य-सं प्रह ढाई दृज्ार प्रष्ठों का बहुत बड़ा श्रंथ है। इस में ६९ समयः या अध्याय है, जिनमें पृथ्वीराज का जन्म से लेकर सरण पृथ्वीराज पर्यव वृत्तात है । ्रसंगवश पृथ्वीराज का जिन-जिन राखो लोगों से जहाँ-जहाँ काम पड़ा था, उन का भी पयाप्त विवरण इस में मिलता है। इस प्रकार उस समय के भारत- वर्षं ॐ प्रायः सभी राजाच और उन के राज्यों तथा वहाँ के लोगों का पर्याप्त विवरण इंस महान प्रथ मे मिलता है । इन्दीं कारणों से कनल टाड का इसे पने समय का विश्वइतिहास मानना पड़ा था । रासो के अनुसार प्रथ्वीराज सोमेश्वर का पुत्र तथा अर्णोराज काः पौत्र था । सोमेश्वर का विवाह दिल्ली के तोमर राजा अनंगपाल की कन्या से हुआ था । अनंगपाल की दो कन्याएँ थीं, जिन में से एक का नाम सुन्द्री तथा दूसरी का नाम कमला था । कमला अजमेर के. चौहान राजा सोमेश्वर को व्याही थी ओर इसी से प्रथ्वीरान का जन्म हया था । दूसरी कन्या सुद्र का विवाह कन्नौज के राठौर राजा विजयपाल से हुआ था और इसी से जयचंद॒ का जन्म हा । अनंगपाल पुत्रहीन थे और इसलिए उन्होंने अपने नाती प्रथ्वीराज को गोद ले लिया । जयचंद भी उन का नाती था पर उन को स्नेह पृथ्वीराज से इसलिए अधिक था कि विवाह के पहले हो जब जयचंद के पिता विजयपाल ने अनंगपाल के ऊपर चढ़ाई की थी तब इन्हीं प्रथ्वी- राज के पिता सोमेश्वर ने तोमरराज की सहायता की थी । इसका फल यह हुआ कि अनंगपाल का राज्य भी ऐ्रथ्वीराज के हाथ लगा और इससे जयचंद॒ बहुत कुढ़ा । यद्यपि उस समय वह सब से धिक सम्रद्धिशाली था, आर्यावत के प्रायः सभी राजा उसके सामने शीश नवाते थे; पर प्रथ्वीराज इस से सदा अकड़े ही रहे । जयचंद ने एक. बार संसार को अपना एकछत्राधिपत्य दिखाने के लिये राजसूय यज्ञ का विशाल आयोजन कर यज्ञ के कामों में हाथ बेंटाने के लिए सब राजाओं को निमंत्रित किया। प्रथ्वीराज भी निमंत्रित हुए पर उन्होंने -वहाँ जान! अस्वीकार किया । जयचंद ने अपनी कन्या




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