विश्व का आधार जैन धर्म | Visva Ka Adhar Jain Dharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) भार उटाद्े श्रौर स्ये नेव जीवन प्रदान कीजिए | भौतिक चिज्ञान वा क्षत्र जडजगत है श्रीर श्राध्यात्मिव टिन्नान का क्षेत्र चेतन है। जड़ जगत लोहे, सोने, ताम्वे व पन्थर घ्ादि से देखा जाता है श्रौर चेतन जगत मन व हृदय में । भौतिक साधन मई नई मधीनें व वस्वादि विलास की सामग्रीयें हैं । श्रौर श्राध्याहिमिक साधन मानसिक विचारणायें हैं । भौतिक ज्ञान प्स्तकों में लिखा है । श्रौर श्राध्याहिमिक ज्ञान मन में लिखा है । भौतिक जीवन दारीर में दिखाई है श्र य्राध्याह्मिक जीवन मन में ससुर बिया जाना । भौतिक सूख भौतिक पदार्थों के भोग में है श्र श्राध्याहिमिय सूख मानसिक सन्तोप व नान्ति में हैं। भौतिकता को जगत जानता है, देखता है, भोगता है, तथा विद्वास करता है । परन्तु थ्राध्यात्मिकता को न जानता है. न देखता है, न भोगता है । बिव्वास परें तो कसे करे । दोनों को साथ साथ रख्व वर देखे, तो सघय को श्रवकाद ने रहे । जसे भौनिकता प्रत्यक्ष वमे श्राध्याश्मिपता नी प्रर्यल हो जोये । श्राध्यारिमिकता के श्रभाव में ब्ाज ना चिज्नान लंगटा टै, झाल ने साधन प्रभरे रै, श्राज का स्नान पुष्यः, श्राज का जीवन मार £ । प्राज का सुख कहपना है । क्णोरिः याद्यमे नाव साधन सन्परननय गुरी द्ोफर भी यदि मस्तरंग में निरात व धधान्त बना रे तो उसे नु नहीं फट्‌ सकते । वस एसी में हैं घर्मे का वास्तदिग्य सास्य । सौहिना सामसों मे उपभोग को स्नात कते हैं घौर प्ाप्याहिसक साधनों दे दण्घोग गे गे । यय ससाएये धर्म किस पफार सलीयन से पर दिया जा मयता सत: यदि जीयन को घासतव में सुगों दसाना है नो एसे शवस्य यानि द कक क ~ ४ ज ग्ण कम > यर प्रपनारटूये, गयोरिदद्य ष पन्वरयं जोदनो च्य सासब्सन्य को दानद यम्य ^ प 1 न दास्तपिक सगे है । पर्स सो दोहे पोडकर भौलियता याये दौरी सा रप >. म्न क इ ह हो है, यही गारण है कि जीयन, गरमाज दे साप्ट् भिदादि




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