जैन तत्त्व समीक्षा का समाधान | Jain Tatva Samiksha Ka Samadhan

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Jain Tatva Samiksha Ka Samadhan by फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ७ इतना श्रवश्य है कि ग्राग में निमित्तकारण दो प्रकार के वतलाये गये हैं 1 एक प्रेरक निमित्तकारणं ग्रौर दूमरा-श्नश्र रक निमित्त कारण । इन दोनो निमित्त कारणोकी कवं के प्रति अन्वय श्रौर व्यतिरेक व्याप्तिं भी श्रागम मे पृयक-~पृथक रूप में निश्चित की गई है 1 (स्पृ. 16) (11) तात्पर्यं यह्‌ क्रि जैनागम मे कार्योत्पत्ति कौ व्यवस्था इसप्रकार स्वीकृत की गई है क्रि उपादान (कार्यरूप परिणात्त होने की स्वाभाविक योग्यता विशिष्ट पदार्थ ) तो कार्यरूप परिणत होता है, परन्तु वह्‌ तभी कार्यरूप परिणत होता है जब उसे प्र रक और श्रप्ने रक (उदासीन ) निमित्तो का सहयोग प्राप्त होता है । उसको प्रेरक निमित्तो का सहयोग प्र रकता के रूप में श्र श्रप्र रक (उदासीन) निमित्तो का सहयोग भ्रप्रेरकता (उदासीनता) के रूप मे मिला करता है । इस तरह उपादान कारण प्रो रक निमित्त कार्ण श्रीर श्रप्नरक (उदासीन) निमित्त कारण इन तीनो के रूप मे कारण सामग्री के मिलने पर ही कार्योत्पत्ति (उपादान की कार्यरूप परिणति) होती है। (सपृ 16) (12) फिर भने ही यह मानता रदे कि उक्त श्रवसर पर कुम्भकार छप प्रेरकं निमित्त की उपस्थिति रहते हुए भी मिट्टी स्वय (श्रपने प्राप) म्र्थातु कुम्भकार की प्र रखा प्राप्त कयि विना ही भ्रपने मे घट की उत्पत्ति कर लेती है ग्रौर कुम्भकार बहा सर्वथा श्रकिचित्कर ही यना रहता है । परन्तु उसकी यह मान्यता प्रमाणसम्मत नहीं है । (स पृ 19) (13) उक्त पद्य (35) का श्रथं करते हुये उत्तरपश्न ने लिखा है कि अन्य द्रव्य अपनी विवधषित पर्याय के द्वारा इस प्रकार निमित्त है जिस प्रकार र्माल्तिकाय गति का निमित्तहै।(त च~ पु 7) इसमें श्रपनी विवक्षित पर्याय के द्वारा इस भ्रश का वोघक कोई पद पद्य में नही है । यह पद्याथ से अतिरिकत है जो ग्नावश्यक है । (स पृ 23) (14) इस तरह 'नच्वेव इत्यादिक कयन से श्रौरं उसमे पठित्त योग्यताया पद का साक्षात्‌ पद पिशेषण होने से निमित्तोक्रौ कार्यकारिता ही सिद्ध होती है जिसका निपेघ उत्तर पक्ष करना चाहता हैं मंयोफि योग्यताया पद का साक्षात्‌ तभी सार्थक हो. सकता है जब निमित्तों को काये के प्रति कार्य कारी माना जाग । मालूम पता है कि उसलिए नव्वेव इत्यादि कथन का प्र्थ उत्तर पक्ष ने झपने रतत्य में नहीं किया है + (स पृ 24) (15) प्रय यदि उत्तरपक्न की मान्यतानुसार नीव मे होने वाले क्रोध श्रादि परिरामनो को उत्प्ित कार्यकाल की योग्यता के अनुनार मानो जावे श्रौर फछरोच प्रादि तमो के उदव को वहा भ्र मदथा प्द्िचत्रिर दी मन पिया जाने तो जिस जीव को वतमान समयमे छोघल्प परिसाति हो रही दै उपक पुरं समयमे कार्गष्पने प्रोचषूष पदिरानि दौ उम जीवर स्योकार करना ग्रनि- याप हो जायगा । उस तरह स्र पदिका मे श्रनन्त कान तक उस जीव की मतत क्रोधन परिनि पीती रद्नो चहोर्‌ । व्रथात्‌ उममननो स्मो मान, माघा या लोभरूप परिराति हामी ज्रौरन खा र्थ परितपति का सदा दभाय हकर उमरो नु ग्वभाव षर प्रिाति ही कमी हो सफेगी । झौर थे नेता नाविकू योग्यता सित्य उपादान सक्ति के ख्प में यर्याय साल थिसे कार्य काने की वा-यत्ता हा भतार नहीं दो. सकती दे, स्पोफि रायसप होने के त्वरया उसे. स्याभाधिक सदी सका जा सपा है । दस पिन से प्रफेट है कि नित्य उपदान शक्तिरूप दस्यसपित के सूप से




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