हम सौ वर्ष कैसे जीवें | Ham Sau Varsh Kaise Jiven

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Ham Sau Varsh Kaise Jiven by केदारनाथ गुप्त - Kedarnath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) कपड़े दृप्तो शरीर मे यागे रहते दै,दम उन्हें साफ रखने का कष्ट भी नहीं उठाते । जब ऐसे ऐसे कारण मौजूद हैं. तो दम अपना जीवन किस प्रकार स्वस्थ रख सकते हैं । दूसरे देश के निवासी उपरोक्त ख़राबियों के बहुत दूर कर चुके हैं और धीरे धीरे दूर करके कहीं श्रागे बढ़ रहे हैं और हम बैठे बैठे अभी अपने कपाल के ही ठोक रहे हैं । श्रव हमे भी साहस करना दोगा । ब्रह्मचर्य्य का पालन करना होगा; सादा सादिक भोजन करना तथा स्वच्छ जल पीना दोगा, स्वच्छ वायु सेवन करना होगा, विचार पवित्र रखने पड़े गे, कपड़ों तर शरीर की सफ़ाई पर पूरा ध्यान देना होगा, तभी हम स्वस्थ रहकर पूणं आयु का भोग कर सकेंगे और तभी हम कम से कम १०० वर्ष पर्य्यन्त जीवित रहद सकेंगे । प्रस्तुत पुस्तक इसी उद्‌ श्य से लिखी गै दे श्रौर इसका नाम भी ष्म सौ वषं कैसे जीवं? रक्खा गया है । इसमे झमली ढज्ञ॑ पर उपरोक्त विषयों में से एक एक पर विवेचना की गई है । कम से कम ५० स्वास्थ्य सम्बन्धी पुस्तकें और बहुत से समाचार पत्रों को पढ़ कर इस पुस्तक की रचना हुई है । मेरा तो विश्वास है कि इसमें पाठकों को श्रौर विशेषकर विद्यार्थी समुदाय को स्वास्थ्य लाभ में बढ़ी सुगमता होगी । इस विषय की पुस्तक के लिखने में मैने वास्तवमे धृष्ठता की दहे। यदद विषय डाक्टरों का है श्रौर उन्हें लिखना चाहिये किन्तु जब्र तक वे इस विघय को अपनी मातृ भाषा हिन्दी मे लिखने का साहस नदीं करते तब तक इस पुस्तक को निकालने में मैं कोई इजं नहीं समभता । इस पुस्तक के कुछ लेख “ताज” तथा दूसरे पत्रों में समय समय पर निकल चुके हैं और कई ज़रियों से मालूम इु्रा कि पाठकों को वे बहुत पसन्द ये हैं । इसलिये इन्हें पुस्तक स्वरूप में प्रकाशित करने का और भी. अधिक सादस हुआ ।




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