ईश्वरीय बोध अथवा परमहंस श्रीरामकृष्ण के उपदेश | Ishwariya Bodh Athwa Paramhans Shreekrishna Ke Updesh

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Ishwariya Bodh Athwa Paramhans Shreekrishna Ke Updesh by केदारनाथ गुप्त - Kedarnath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) तो उसका 'पर इद नहाँ बिगड़ सकता चाहे वद ससार के फोलाहल में रहे अथवा जङ्घत मे एकान्त वान करे 1 ७ पारस पत्थर के स्प्ं से लोदे कौ तलवार सोने की दो जाती दै और यद्यपि उसकी सूरत वैसी ही बनी रहती है किन्दु लोढे की तलवार फी तरह उससे लागा क दानि नीं प्च सकती | उनी प्रकार इश्वर के चरण स्पर्श से उसका हृदय प्विध्र हो जाता दै লঙ্কা হুর হাক तो यै्ी दी रता है मिन] उसमे दूसरे का दानि दीं पटच सकती 1 ८ समुद्र तल में स्थित चुम्बक को चद्धान समुद्र के ऊपर चलने वाज्ञ जहान का अपत्री थोर खांच ता हं, उक्षे कौ मे निकाल डालता ६, सप तप्तो को अलग अलग कर देता है और जहाज क्रो समुद्र में डुब्रो देता दे उसी प्रसार जीवात्मा का जर आत्मजश्ञान हो जाता है, जग्र यह अरने दवा करा समान रूप से विश्व भर म देसने लगता हैँ तो मनुष्य का व्यक्तित्व श्रोर स्वाय एफ क्षण म नष्य हा जाते है श्रौर उसका जोबात्मा परमेंश्वर के अगाध प्रेम सागर मे दूत जाता है। ९ दूध पानी में जय मिलाया जाता है ता वह तुरन्त मिल जाता है फिनत दूध का मक्सन निकाल कर डालने से यह पानी में नहीं मिलता बल्कि उसमे ऊपर तैरने लगता हैं | उसी प्रकार जय जीवात्मा फाव्रह्मका साक्षात्कार दो जाता ई तो वह्‌ अनेक यद्ध प्राणियों के बीच मँ निरन्तर रदा हुआ भी उनके भ्रुर सस्कारां से भ्मापित नहीं हो सकता | ৯ नवोढा तस्णी शा जव तक बच्चा नदीं होता ततर पद शृहकाय्यं म निमम रहती दै किन यच्चा हा जाने पर णहकास्यों से वह धीरे २ वेपरथाद द्वाती जाती है और बे की आर बह अधिक ध्यान देती है । दिन भर उसे बड़े प्रेम & साथ चूमता चाटती और प्यार करती है। इसी प्रफार मनुष्य श्रशान की दशा में ससार के सब कार्य्यों में लगा रहता देकिन्तु ईश्वर फे मजन में आनन्द पाते ही थ उसे नीरख मालूम येने लगते दं छीर बह उनसे अपना द्वाय खोंच लेता दे |




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