मनुष्य जीवन की उपयोगिता | Manav Jivan Ki Upyogita

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Manav Jivan Ki Upyogita by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनुष्य ज़ावन का उधयागत!ः एवाड्ू হাই? स्ट व्यक्तिगत मानवी कायं ৩ दे--~ पहला प्रकरण कार्ग्याकाये विचार प्रमेश्वर ने मनुष्य को स्व श्रेष्ठ बनाया है। उसने उसको विचार-शक्ति दी है| उसका कत्त व्य है कि वह इस विचार-शक्ति से काम ले | यदि नहीं लेता ती उसमे और एक साधारण पशु में कोई प्न्तर नहीं है । दो-चार कोस की ण॒त्रा करने के लिए हम कैसे कैसे वेधान वॉधते है । कौन कौन हमारे साः चलेगा, रास्ता खराब तो नहीं है, खाने पीने का सामान तो ठीक है, कल कितना खचं पड़ेगा, इन सव वातो की हमें कितनी चिन्ता रहती हैँ | जब इतनी छोटी यात्रा के लिए तनी भमर करनी पड़ती है तो इस बड़ी संसार यात्रा के लिए कितनी बड़ी कट दी शआ्रावश्यकता है, इसका अ्रनुमान पाठक स्वयं कर सकते हैं। ए मनुष्य, जया सोचो तो सद्दी वू इस संसार में किस वास्ते पैदा किया गया है। अपनी शक्तियों का ख्याल वार । ध्रपनी ग्रावश्यकताश्रों पर विचार कर | নু अपने कतंव्य आप से आप समझ; जायगा और रिप्न-गाधाध्रो ते पचा रदटेगा ।




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