सृष्टिवाद और ईश्वर | Srastivad Aur Ishvar

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Srastivad Aur Ishvar by भारत भूषण - Bharat Bhushan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका | । । । | क्रिश्चियन सष्टि, इसलाम की सृष्टि, छोर अरशथुस्त की सष्टि विपयक जो-जो कल्पनाऐं उन-उन धर्म के अन्थों में-से मिलती हैं वे सच सष्टि कर्ता देवों की दी कृति होती हैं, ऐसा कहते हैं। श्रौर यह वस्तु स्वरूप में प्रथक, परन्तु मूलतः एक समान अनेक देवबाद ही है । मनुष्य की बुद्धि श्रमित होकर जहाँ आगे दृष्टिपात करती है, वहाँ वह आगे दिव्य शक्ति की ही कल्पना करके काम चला लेती है, 'इस प्रकार यह सब सृप्टि कचत्व वाद के ऊपर से देखी जा सकती है । इस दिव्य शक्ति कादशेन किसी ने भी किया नदी । सान्न उसकी कृतियो के उपर से कल्पना करक उसकी शक्तिमत्ता का चित्र पहिले चित्त से चित्रित किया गया है, इस शक्ति का कोई ाकार होता नहीं बह निराकार है, षट्‌ अनिर्वचनीय भी मानी जाती है, तो भी जनसाधारण के दिमाग मे उसका रेखांकन करने के लिये उसको वाणीसे वोधते है । भत्येक देश तथा धर्म के अंथों में एक दी दिव्य शक्ति के जो सिन्न- सिन्न स्वरूप बाणौ द्वारा कथक करने में ्ाते हैं, वे सब एक दुसरे से खिलाफ पड़ते है । कारण कि उनको वाणीबद्ध करने चालो की तथा उसके स्वख्प की पहिचान करने की इच्छा रखने वाले जनसमुदाय कौ देश, काल तथा परिस्थिति प्रथक-प्रथक होती हैं । इस दिव्य शक्ति को वाणी बद्ध करने चाले दर्शक तथा विचारक पुनः एक दूसरे के खण्डन भी करते हैं ; क्योंकि एक दर्शक अथवा विचारक को जां कल्पना अथवा दशन समुचित लगता दै, बही दूसरे को छअनचित प्रतीत होता है । इस कारण सेदही यह खण्डन मर्डन अधिकांश में बुद्धिनाश तथा कल्पना के स्त्रात रूप




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