हिंदी साहित्य विमर्श | Hindi Sahitya Vimarsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सादित्यकी गति ७
भावना निहित रहती है जिसके कारण साहित्यका काठ-निर्देश
किया जाता है |
सत्यको अनन्त ओर धर्मको अनादि माननेवारे यह भू
जाति हैं कि अनन्त सत्य और अनादि धमं केवछ भावनाक्रे दी
रूपमें विद्यमान हैं। मचनुष्योंके छोकमें न तो अनन्त सत्य है,
और न अनादि धर्म है ।
मनुष्य समाज कुछ ही सत्योंको लेकर व्यस्त रहता है । जो
धर्म उसके समाजमें प्रचढित है उसका आदि है और अन्त भी |
संसारम सत्य वदते रहते हैं, और धर्म थी परिवर्तित होते हैं ।
यह सर्वथा संभव है कि जिसे आज हम सत्य समकर अपनाये
हुए दै, उसीको कर भिश्या ससभकर छोड़ ठं । सत्यका यह्
स्वरूप देश और काठसे ही परिछ्लिन्न रदता है अथवा यह कहा
जा सकता है कि देश ओर कारे दी सत्यके इस रूपकी अभि-
व्यक्ति होती है। जब दस यह कहते हैं कि सत्य सवंन्यापक दै,
अविनश्वर दे, तब हस केवल सत्यकी भावनाका दी विचार
करते हैं। यह भावना मनुष्यमात्रमें है । सभी समय और सभी
देशोमिं यह भावना विद्यमान रहती है । सनुष्यकी उन्नतिका मूछ
यही है । सत्यके प्रति उसका जो आग्रह है उसीके कारण उसमें
जिज्ञासा है इसीकी प्रेरणासे वह सदेव परीक्षामे निरत रहता
दै |: इसमें सन्देह नदीं कि सत्यकी यह भावना स्वव्यापक है |
परन्तु जब यह भावना प्रकट होती है तब वह किसी देश-विशेष-
के किसी काल-विशेषमें किसी जाति-विशेषके सचुष्योंमें ही प्रकट
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