अर्ध कथानक | Ardha Kathanak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ सेवामे जा धुसे । आदमी चलते पुरजे थे, किसी तरह बनारसके कंरोडी बन गए. खओौर दरवार छोड दिया 1 बदायूनीके अनुसार आप एक वेदयापर फिदा ये| आगरेसे रवाना होनेके पहले आपने उसे काफी रम्म पिछाई और एक सरपरस्त भी सुकरर कर दिया । जत्र वेश्याओके दारोगाने बादशाह सलामतसे इस बातकी शिकायत की, तो गोसाल बवनारससे पकड मगाए गए । इसके बाद उनपर क्या गुजरी इसका पता नहीं । पर बनारसी हथकंडे दिखलछाकर निकल भागे दोगे, इसमे सन्देह नरी | एेसी दी मजेदार बातोसे बदायूनीकी तवारीख भरी पडी है जो उनके आत्मचरिंतके अंग हैं, इतिहाससे उनका सम्बन्ध नहीं । (_पर बनारसीदासका आत्मचरित उपयुक्त आत्मचरितोसे निराला है । उसमें न तो बाणमदका सूक्ष्म चित्रण है न बिर्दणकी खुशामद । शायद फारसी उन्होंने पढ़ी नहीं थी, इसलिए, बाबर इत्यादिकी उनके आत्मचरिमें वर्णित बादशाही आन बान शानका उसमें पता नहीं चलता । बनारसीदास एक अध्यातमी और व्यापारी थे। इन दोनोका क्या सजोग, पर खाली अध्यातमसें तो रोटी चलनेकी नहीं थी; व्यापार करना जरूरी था, पर उनके आत्मचरितसे पता चलता है कि वे कच्चे व्यापारी थे । समय समय पर उनकी व्यापारिक बुद्धि ऊपर उठनेकी कोरिदा करती थी; पर उनके अतरमानसमे अध्यातमकी बहती धारा उसे दता देती थी । पर वे थे आदमी जीवटके, और जीवनकी कठिनाइयोसे वे हँसकर मिडनेको सदा तयार रहते थे । अगर उनके ऐसा कोई दूसरा ज्ञानी उस युगमे अपना आत्मचरित छिखता तो वह आत्मज्ञान और हिदायतोसे इतना बोझिल हो उठता कि छोग उसकी पूजा करते, पढ़ते नदी। एक सच्ची आत्म- केथाकी विशेषता है आत्म ख्यापन; आप गोपन नही । 'बनारसीदासने अपनी कमजोरियों उघेड कर सामने रख दी है और उनपर खुद हैँसे हैं और दूसरोको हसाया है । अंघ विभ्वासोकी) जिनके वे खुद शिकार हुए थे, उन्होने बडी ही खूबीसे हँसी उडाइ हे । १७ वी सदीके व्यापारकी चलन केसी थी, लेन देन केसे होता था; कारवा चलनेमें किन किन कठिनाइयोका सामना करना पडता था; इन सब बातोपर अर्ध॑ कथानकसे जितना प्रकाश पडता हे उतना किषी दुसरे खोतसे नदी 1 याचके समय अनेक ॒विपत्तियोका सामना करते दए भी बनारसीदास अपने हसो स्वभावको भूल नदी ओर आफतोमे भी उन्दने दास्यकी सामग्री पाई! बनारसीदास अव्यामती अौर व्यापारी दोनो थे,




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