अर्ध कथानक | Ardha Kathanak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७
सेवामे जा धुसे । आदमी चलते पुरजे थे, किसी तरह बनारसके कंरोडी बन गए.
खओौर दरवार छोड दिया 1 बदायूनीके अनुसार आप एक वेदयापर फिदा ये|
आगरेसे रवाना होनेके पहले आपने उसे काफी रम्म पिछाई और एक सरपरस्त
भी सुकरर कर दिया । जत्र वेश्याओके दारोगाने बादशाह सलामतसे इस बातकी
शिकायत की, तो गोसाल बवनारससे पकड मगाए गए । इसके बाद उनपर
क्या गुजरी इसका पता नहीं । पर बनारसी हथकंडे दिखलछाकर निकल भागे
दोगे, इसमे सन्देह नरी | एेसी दी मजेदार बातोसे बदायूनीकी तवारीख भरी
पडी है जो उनके आत्मचरिंतके अंग हैं, इतिहाससे उनका सम्बन्ध नहीं ।
(_पर बनारसीदासका आत्मचरित उपयुक्त आत्मचरितोसे निराला है । उसमें
न तो बाणमदका सूक्ष्म चित्रण है न बिर्दणकी खुशामद । शायद फारसी उन्होंने
पढ़ी नहीं थी, इसलिए, बाबर इत्यादिकी उनके आत्मचरिमें वर्णित बादशाही
आन बान शानका उसमें पता नहीं चलता । बनारसीदास एक अध्यातमी और
व्यापारी थे। इन दोनोका क्या सजोग, पर खाली अध्यातमसें तो रोटी चलनेकी
नहीं थी; व्यापार करना जरूरी था, पर उनके आत्मचरितसे पता चलता है कि
वे कच्चे व्यापारी थे । समय समय पर उनकी व्यापारिक बुद्धि ऊपर उठनेकी
कोरिदा करती थी; पर उनके अतरमानसमे अध्यातमकी बहती धारा उसे दता
देती थी । पर वे थे आदमी जीवटके, और जीवनकी कठिनाइयोसे वे हँसकर
मिडनेको सदा तयार रहते थे । अगर उनके ऐसा कोई दूसरा ज्ञानी उस युगमे
अपना आत्मचरित छिखता तो वह आत्मज्ञान और हिदायतोसे इतना बोझिल
हो उठता कि छोग उसकी पूजा करते, पढ़ते नदी। एक सच्ची आत्म-
केथाकी विशेषता है आत्म ख्यापन; आप गोपन नही । 'बनारसीदासने अपनी
कमजोरियों उघेड कर सामने रख दी है और उनपर खुद हैँसे हैं और
दूसरोको हसाया है । अंघ विभ्वासोकी) जिनके वे खुद शिकार हुए थे,
उन्होने बडी ही खूबीसे हँसी उडाइ हे । १७ वी सदीके व्यापारकी चलन
केसी थी, लेन देन केसे होता था; कारवा चलनेमें किन किन कठिनाइयोका
सामना करना पडता था; इन सब बातोपर अर्ध॑ कथानकसे जितना प्रकाश पडता
हे उतना किषी दुसरे खोतसे नदी 1 याचके समय अनेक ॒विपत्तियोका सामना
करते दए भी बनारसीदास अपने हसो स्वभावको भूल नदी ओर आफतोमे भी
उन्दने दास्यकी सामग्री पाई! बनारसीदास अव्यामती अौर व्यापारी दोनो थे,
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