नवजीवन | Navajeevan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिवकुमार जाकर उसके गलें से चिपट गया । शिवकुमार की श्रवस्था चार
वर्ष की थी ।
वैजंती को उस समय कुछ श्रच्छा न लग रहा था । वह श्रपने से, घर
से, सारी सृष्टि से असन्तुष्ट थी । रामसरन के कष्ट नें उसके संसार में महान्
परिवर्तन कर दिया था ।
शिवकुमार की यह क्रीडा उसे वहूत भाती थी, पर झ्राज मानसिक
स्थिति भिन्न होने के कारण उसे श्रच्छी न लगी । उसने बालक को फछ्िटक
दिया बहु संमल न पाया श्रौर भूमि पर जा पडा ।
माँ के पास जाकर शिकायत की--“चाची ने मारा है ।””
सहदेई की स्थिति वही थी जो साधारख जन की होती है । वैजंती के
पति के कारण परिवार पर यह् विपत्ति राई है । पत्नी यदि पति के पुण्य
फलो में भ्राधे की म्रधिकारिसी है तो अपराध में भ्रद्ध-दराड-भागी क्यो नहीं ?
इसलिए जब से यह समस्या खडी हुई हैं, सहदेई, वैजंती पर क्रुद्ध हो रही हैं ।
इसीके कारण यह सब हुप्रा । इसीका झभाग परिवार के लिए घातक
वचर बन गया ।
चटक्कर बोलो-- क्यों री .. !” श्र इसके भ्रागे जैसे उसका वाक्य
अपने ही बल से मुंह में रुक गया ।
वैजंती ने सहदेई के भ्रयृखं वाक्य में कुछ पाया, जिस पर उसे विश्वास
न हुआ । उसने शीश उठाकर जेंठानी के मुख की श्रोर देखा रौर फिर
उसका हृदय घक से हो गया ।
वह समझती थी कि परिवार की प्रतिष्ठा की वेंदी पर वह बलिदान
हैं, इससे उसका स्थान महत्त्वपूर्ण होना चाहिए । पति पिता की प्रतिष्ठा के
निमित्त कारागार-निवासी वना है रौर पिता अकेले उसी के तो नहीं हैं,
सव के हँ ! जो उसने किया वह सब के लिए । उसका समस्त भार भुगतना
पड़ेगा उसे । वह प्रसन्नता, से गर्वभरी, उसे सहन करने को प्रस्तुत थी ।
उसके कारख शिवकुमार इस प्रकार गिरा, इससे उसमें पश्चात्ताप का
छंद्य हुआ था । सोच रहीं थी कि इतना श्रपने दुःख में लो जाना क्या
~ १६ ऋ
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