विचार पोथी | Vichar Pothi

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Vichar Pothi by विनोबा - Vinoba

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ विचारपोथी पर डालनेवाले गुलाम या लुटेरे लोग' राष्ट्र संज्ञाके पात्र नहीं हैं। ७9 'देशे काले च पात्रे च का न्याय खुद अपनेको भी लागू है। ७१ अज्ञानमेंसे ज्ञान उत्पन्न नहीं हो सकता 1 ७९ दुर्बलका 'बलिदान' नहीं, बलिदान बलवानका | ७३ _ शबलिदान' कहते ही बलिका स्मरण हो आता हैं। बलिदान माने आत्मसमपेण । ७४ कमे करूगा तो फर भी लूंगा, यह रजोगुण । फर छोडूंगा तो कमे भी छोदूंगा, यह तमोगुण । दोनों एक ही हैं । | ७१. यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते चं यः 1' क्योकि, लोगोको सेवाकौ जरूरत रहती हं, सो उन्हे भक्त मिल जाता हं; भक्तको सेव्यकी जरूरत रहती हं, सो उसे लोग मिरु जाते ह । | ७६ रातको कुत्ते भौंक ने लगे ,उससे नींद खराब हुई, इस कारण भले आदमी को 'दुःख' हुआ। पर जब दूसरे दिन सबरे मालूद्रहुआ कि उस भौंकनेसे आये हृए चोर भाग गए तब सुख' हुआ । ७9 ब्रह्मचयं पारमार्थिक साधन हं । ब्रह्मचर्याश्रमं परमार्था नुकुल सामाजिक संस्था हं }




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