गल्प - रत्नावली | Galp Ratnavali

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Galp Ratnavali by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री प्रेम चन्द श्री प्रेमचन्द जी का जन्म जिला बनारसके महवा गाँव में सन्‌ १८६० में हुआ । इनका असली नाम द्‌ धनपतराय, परन्तु इनका साहि- त्यिक नाम “प्रेमचन्द' है । इन्होंने १६०१ से साहित्य-जगत्‌ में प्रवेश किया । पहले पहल ये उदू में ही लिखते थे । इनका सब से पहला उपन्यास “प्रेमा” सन्‌ १४०४. में प्रकाशित हुआ परन्तु वास्तव में इन्होंने १६१४ से लिखना प्रारम्भ किया। श्री श्रेमचन्द जी हिन्दी कहानियों के माने हुए राजा ह । परन्तु मुभे तो इस में अत्युक्ति प्रतीत होती हैं और मुझे खेद तथा आश्चर्य है कि श्री प्रेमचन्द जी ने कभी इसका प्रतिकार क्यों नहीं किया ९ श्री अमचन्द जी कलाकार है । वे रस से कस निकालने की सामथ्य रखत हैं । उनकी कृतियाँ सुन्दर है, उन में से बहुत सी, न केवल रुलाने हँसाने की सामथ्ये रखती है प्रत्युत वे मानवीय हृदय को बलात्‌ पने प्रवाह मेँ बहाने कौ सामथ्ये भी रखती हैं। उनकी भाषा आलंकारिक, चुटकियां कसी हुई, मुद्दावरे चुस्त होते दै। मराम्य जीवन, गृहस्थ कै जंजाल-बचो ओर वृद की मनोढ़त्ति इन सब करा स्वाभाविक वणन करने में प्रेमचन्द सफल दै। स्वाभाविकता में उन्हें सफलता प्राप्त है । वे ख़ब सोच विचार कर कहानी का ढांचा तैयार करते हैं अपने पात्रों से सलाह मश्विरा करना उन्हें पसन्द नहीं । उनकी भाषा और शैली पर फिसाने आजाद की शैली की गहरी छाप दीख पड़ती दे । उनकी नवौन कहानियों की अपेक्षा पुरानी कहीं अच्छी हैं । प्रमचन्द जी की कहानियों में एक दोष दै ।के वे आयः अेक कहानी में भूमिका बाँघते हैं, इस से पाठकों का मन कथानक से सदसा अनुरक्त




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