कविवर बिहारी | Kavivar Bihari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ १३ ) ग्वछता दै ।. निर्तन्देड विद्दारी रीति काठ के सर्वाधिक लोक प्रिय कवि थे, शाघुनिक फाल में ,भी; जब कि . रीति . परम्पण बंतिम साँस ले रही-थी, घिद्दारी के दोड़े सहदय - साझिस्यिकों के ज कर्पण-केन्द्र चने रहें. । आधुनिक काल के अनेक समालोचडों ने सतसई की टीका और भाष्य लिखकर बिद्दारी खम्बन्धी 'चर्चा को भप्रसर किया दै । ः वस्तुतः ही ब्रिद्दारी के दोदों में इतना सुन्दर वागवेदरधथ्य है कि सहदय आलोचक उसपर युग्ध हण धिना नहीं रद सकता । मैंने दिखाया है कि बिद्दारी सचेत कलाकार. थे, जो शब्द सौर उनके अर्थः पर विचार कस्त रहने चाले शीर प्रयुक्त दाद वादा जगत मैं जिस रूप को अमिष्यक्त करते हैं, उसे भन ष्टी मन समश्षते भौर तोते रषटने.वारे कविर की श्रेणी में पढ़ते हैं। श्टगाररस फी अभिन्यञ्जना फे समय ऐसे कवि रसोदीपन-परक चेशर्भे.की पूरी शूदि ध्यानम रवतर्ह। वेप्रियाकी शोभा, दीप्ति और कान्ति के सायन्साथ-माधुर्यं, . जौदाय, आदि मानप्त गुर्णों को भी जब व्यत्त फरना प्वाइते हैं, _तो उन आंगिंक भर चाचिक . चेटाओं का चित्र छींचते हैं, जो त्तद मानसिक गुणों की ब्यंजना करने में समर्थ दोती है । वे अनेक प्रकार के दावों, हेलाओं,. छुद्डमित-मोंटायित-विव्दोकों भार अनुभावों की योजनाका भायोजन करते हैं। ब्रिद्दारी इस कला में अत्यंत पड़ ई। रीतिकाल के कर्चियों में सांदयं को मादक बनाकर उपभोग्य चनाने की प्रदृतति यलख्वती है! चन्द्‌, भर्टकार, लय भौर शंकर के सद्दारे ये कवि सदज सौंदर्य को भी मादक चना देते ईं । परिद्दारी इस दिशा में भी सबसे आगे हैं। इसलिये ऐसे कवि का अध्ययन बहुत कठिन दो जाता है । जो झोमा ' और सौंदर्य को मादक बनाने चाठी कांव्य-पद्धति का निषुण विवेचक नहीं : है, भर धाव्द भर लर्थ के विविच सुकृकार संवन्धों का जानकार नदींष्ैः चट धिष्टारी जैसे सजग काकार कवि के काव्य-गु्णों से बहुत छुट यवित रद जाता है । रक्षाकर जी ने इस पुस्तक में काव्य-गुर्णों की श्र धादद भौर थर्यों की थडुत संकिप्त घिवेचना कर दी है ।




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