अहिंसा - पर्यवेक्षण | Ahinsa - Paryavexan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अहिया-पर्यवेक्षण
भाणीमाने को जिजीविषा और भिवनमुसुलु की कषाय-विशिभीष। *ै से ्रावि-
भूत यहुअह्सि। की धारा कालकम के साथ पान! अब रोहों आर आरोहों में सतत
अवाही रही है । इतिहास के सजभाग पर लाकर, इसके उन्मेष और निभेषो का जब
हम चिन्तन करते हैं तो इसको दार्शनिक जटिलताएं दूर हो जाती हैं श्रौर इसका
सह्ण स्वरूप हमारे सामने आ ज।ता है । इति६।५ केवर्य श्रतीत की ५।य-।५ना
का ही ब्यौर। वही ता, कभी-कभी वह् वतमान की य4।यत। का मी ५।१८५७
बच जाता है ।
अागनसिक धारणा
सागसिक और पौराणिक धारणा के अनुसार उत्सपण और श्रनसपणके
श्रत्येक काल-पकाषे से चौबीस तीयकर होते हैं और वे सभी उपदेश करते हैं. »1ण,
भूत, जीव) सस्नी की हिसा न करो, उत पर शासन संत करो, उपको पीडित संत
१. क. सव्ये जीवा वि ६०्दन्ति, जीविउ न सरजिउं ।
५५६। पाणिषहूं घोर) निर्मन्धा वज्जयन्तिण दस० दि १०
ख. सबब प।णा पियाउया चुप कृं पडकूला श्रत्पिविवहू्। पिव
जोनगो जीवि कामा । तन्वति जीय पिय, नाइवइज्ज फिचणे ।
।८।० १ २.३.
ग. जिजीविष। ५९ वियेष महसा भौर धमं का प्रयोजन प्रकरण में ।
२. क. नोहोय नागों य श्रणिश्बहीवां न्ना य लोभो य पवड्ढनाणा ।
छ(रि एद कलिना कषाया तिजचन्ति मूला पूणन्मवत्त ॥।
२० ८, १५.
ख. थः लयु कवावयोनात् श्ाणानां द्रब्यसावरूपाणों 1
व्यपरोपणस्थ करण सुनिश्चिता भवति सा हिसा ॥
पुरुषान तिदय पाव श्लोक ४६
गे. कपायसुक्ति: किले सुक्तिरिव
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