छन्द : चन्द्रिका | Chand Chandrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.05 MB
कुल पष्ठ :
72
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का द्न्द -चान्द्र का पा लिप्त सजी परी कक बकरी री सर पर आदों ग्णों के सुगमता से याद रन्दने के छिये नीचे एुक पद्य दिया जाता है-- दि मध्य अवसान राखि लघु शेप गुरू दे । य गण रर गण झर त गण चनावदु नियस छंद के ॥ पुनि तहँवे गुरु राखि शेप लघु थ ज स युक्त यणु | तीनों गुरु हैं सगण नयण तीनों लघु घरु मन ॥ मात्रिक गए प्राचीन बंथां में कहीं-कह्दीं मात्रिक छन्दों का लक्षण मातिक गणों द्वारा भों पाया जाता है। वे गण पाँच हैं ट गण ठ गण ड गण ढ गण और णु॒ गणु। छः मात्राओं का ठ गण ५ सात्राओं का ठ गण ४ मात्राओं का डगण तीन सात्राओं का ढ गण और २ सात्राओं का णु-गण होता है । इनके षपभेदों की संख्या भी बहुत है उन सब का यहाँ लिखना निरथक है क्योंकि अब कवि लोग उनके स्थानों में संख्या सूचक शब्दों से दी काम ले लेते हैं | ए दग्वानुर वशन दग्धात्तर उन अक्षरों का नास है जिनको कविता के प्रारंभ में रखना अशुभ माना जाता है। इन्हें अशुभाक्षर भी कइते हैं । ये दुर्धाक्षर १९ हैं यथा-- ड मा य ठ ठ ड ढ ण त थ प फ ब भ म र ल व प ओर हु ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...