छन्द : चन्द्रिका | Chand Chandrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का द्न्द -चान्द्र का पा लिप्त सजी परी कक बकरी री सर पर आदों ग्णों के सुगमता से याद रन्दने के छिये नीचे एुक पद्य दिया जाता है-- दि मध्य अवसान राखि लघु शेप गुरू दे । य गण रर गण झर त गण चनावदु नियस छंद के ॥ पुनि तहँवे गुरु राखि शेप लघु थ ज स युक्त यणु | तीनों गुरु हैं सगण नयण तीनों लघु घरु मन ॥ मात्रिक गए प्राचीन बंथां में कहीं-कह्दीं मात्रिक छन्दों का लक्षण मातिक गणों द्वारा भों पाया जाता है। वे गण पाँच हैं ट गण ठ गण ड गण ढ गण और णु॒ गणु। छः मात्राओं का ठ गण ५ सात्राओं का ठ गण ४ मात्राओं का डगण तीन सात्राओं का ढ गण और २ सात्राओं का णु-गण होता है । इनके षपभेदों की संख्या भी बहुत है उन सब का यहाँ लिखना निरथक है क्योंकि अब कवि लोग उनके स्थानों में संख्या सूचक शब्दों से दी काम ले लेते हैं | ए दग्वानुर वशन दग्धात्तर उन अक्षरों का नास है जिनको कविता के प्रारंभ में रखना अशुभ माना जाता है। इन्हें अशुभाक्षर भी कइते हैं । ये दुर्धाक्षर १९ हैं यथा-- ड मा य ठ ठ ड ढ ण त थ प फ ब भ म र ल व प ओर हु ।




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