विश्व - इतिहास की झलक भाग - 2 | Vishv Itihas Ki Jhalak Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
775
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पंडित जवाहरलाल नेहरू -Pt. Javaharlal Neharu
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९१)
. ११
: १३
कार्ट मावस और सज़दर-संगठनों की वृद्ध
१४ फ़रवरी, १९३२३
उन्नीसवों सदी के बीच के आसपास योरप के मजदूर और समाजवादी संसार
में एक नये और प्रभावशाली व्यवितत्द वाला आदमी हुआ । यहु आदमी कालं माक्सं
था, जिसका नाम इन खतो में पहले हो आ चुका है । वह एक जर्मन यहूदी था ।
उसका जन्म १८१८ ई० में हुआ था । उसने क्रानून, इतिहास ओर तत्वनान का
अध्ययन किया आर एक अस्रवार निकाला, जिसके कारण उसका जमनी के अधि-
कारियों से झगड़ा होगया और वह पेरिस चला गया । पेरिस में वह नये-नये लोगों
के सम्पर्क में आया, उसने समाजवाद भर अराजकतावाद पर नई-नई कितावें पढ़ीं
ओर समाजवादी वन गया । वर्ह पेरिस मं फए़डरिक एञ्जेल्स नामक दूसरे जर्मन से
उसकी मुलाक़ात हुई । यह इंग्लण्ड आकर वस गया या और वहाँ रुई के बढ़ते
हुए उद्योग में एक कारखाने का मालिक वन गया था । एज्जेल्स भी वर्तमान
सामाजिक स्थिति से दुखी और असन्तुष्ट था और अपने चारों तरफ़ दीखनेवाली
गररीवी ओर शोषण को रोकने के उपायों की तलादा कर रहा था । सुधःर-सम्बन्धी
रॉवर्ट ओवेन के ख़यालात और कोशिशें उसे अच्छी लगीं और वह ओवेन का अनुयायी
वन गया 1 पेरिस जाने पर उसकी काल माक्सं से पहलेपहल मुलाक़ात हुई । इससे
भी उसके खयालात बदले ! भगे से माक्सं ओर एजञ्जेलस गहरे दोस्त ओर साथी हो-
गय । दोनों के एक-से खयाल थे और दोनों एक ही उद्देश्य के लिए दिलोजान से
मिलकर काम करने लगे । उम्र में भी दोनों क़रीब-क़रीब बरावर के थे । उनका
सहयोग इतना गहरा था कि जो किताबें उन्होंने छपाई उनमें से ज्यादातर दोनों की
लिखी हुई थीं ।
उस वक्त की फ्रांस की सरकार ने माक्से को पेरिस से निकाल दिया । यह
लुई फ़िलिप का जमाना था । मार्क्स लन्दन चला गया और वहाँ वहुत वर्ष तक रहा ।
वहाँ वह न्रिटिश म्यूज्ियम की किताबें पढ़ने में लगा रहता । उसने खूब मेहनत करके
अपने उसुल पक्के कर लिये और फिर उनपर लिखने लगा । मगर वह कोरा
अध्यापक या तत्त्वज्ञानी नहीं था, जो उसूल गढ़ा करता हो और मामूली बातों से
सरोकार न रखता हो । जहाँ उसने समाजवादी आन्दोलन की धूँधली विचार-रेखा
का विकास किया ओर उसे स्पष्ट किया और उसके सामने निद्चित और साफ़-साफ़
विचार और ध्येय उपस्थित किये, वहाँ वह मजदूरों और उनके आन्दोलन को
User Reviews
No Reviews | Add Yours...