कसाय पाहुड़म | Kasay Pahudam

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Kasay Pahudam by फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५ ) दो छथासठ सागरप्रमाण है सो इसका खुलासा अ्रनुत्कृष्टके समान कर लेना चाहिये । अनन्तानुबन्धी चतुप्ककी अजघन्य प्रदेशविभक्तिके तीन विकल्प होते हैं--अझनादि-झनन्त, 'अनादि-सान्त और सादि-सान्त । इनमेंसे प्रारम्भके दो विकल्पोंका खुलासा सुगम ह । अब रहा सादि-सान्त विकल्प सा इसका जघन्य काल अन्तमुंहूर्त हे और उत्दाटट काल कुछ कभ अर्घ पुदूगल परिवतेनप्रमाण है, क्योंकि बिसंयाजनाके बाद इसकी संयाजना हानेपर इसका कमसे कम अन्तमुहूत कालतक आर अधिकसे झधिक कुछकम अधघ॑पुदुगल परिव्रतंन काल तक सत्त्व पाया जाता हें । लोभसंज्वलनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिके भी उक्त तीन विकल्प जानने चाहिये । मात्र इसके सादि-सान्त बिकल्पका जघन्य श्मौर उच्छृ काल अन्तमुद्रूते ही प्राप्न हाता ह, क्योकि जघन्य प्रदेशविभक्ति हनेके बाद इसका अन्तमुंहर्त कालतक ही सर्व देखा जाता है। कालकी अपेक्षा मूल और उत्तर प्रकृतियोंकी यह च्माघ प्ररूपणा है । गति आदि मार्मगाम्रोमरं अपनी अपनी विशेपताको जानकर कालका विचार इसी प्रकार कर लना चाहिय । अन्तर--एक वार माहनीयकी उत्ृषर प्रदेशविभक्ति टानेके बाद पुनः वह्‌ अनन्त काल बाददीप्राघ्र हाती ह, इसलिए सामान्यसे माटनीयकरी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य ओर उच्छ श्रन्तरक्ाल अनन्तकाल ह । अथवा परिणामाकी सग्यतासे उसका जघन्य अन्तर काल असंख्य,न लाकप्रमाण भी वन जाता है । तथा उठ्कप्ट प्रदेशविभक्तिका जयन्य श्रीर्‌ उत्क काल ०क समय हैं, टसलि र इसकी गनुत्कृष्ट प्रदेशपिभक्तिका जघन्य और उच्छृ अन्तर एक समय ह। इसी पत्रकार मिध्यात्व, मध्यकी आठ कपाय अर पुरुपवदके सिवा आठ नोकपायों के विपयमे घटिन कर वेना चादिष्‌। अनन्तानुवन्वचतुष्कका अन्तरका कसम्बन्धी सव कथन उक्त्रमाण हीर । पर्‌ तिसंवाजना प्रकृति होनेमे इसकी अनुक्छर प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट झन्तर कुछ कम दो छुयासठ सागरप्रमाण भी वन जाता है, इसलिए इतनी विशेषताका अलगसे निर्देश किया । जप सव प्रकृतियोकी उत्क््ट प्रदेराविमक्ति क्षपणाकिं समय दानी है इसलिए उनकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका अन्तरकाल नहीं प्राप्त होता । मात्र सम्यक्त्व ओर सम्यम्मिध्यात्व ये दोनों उद्रैलना प्रकृतियाँ है, इसलिए इनकी अनुत्क्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और द्रष्ट अन्तर कुटु कम श्रध पुगदूल परिवतनप्रमाण बन जानेसे वह उक्त कालप्रमाण है । तथा पुरुपचेद और चार संज्वलन इनकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति एक समयके लिए होती हे, इसलिए इनकी अनुतर प्रदेशविभक्िका जघन्य आर उत्कृष्ट अन्तर एक समय ह । समान्यसे माहनीयकी जघन्य प्रदेशविभक्ति दसव गुणस्थानके अन्तिम समयमे प्राप्त होती टे, इसलिर इसरो जघन्य अर अरजवन्य प्रदेशव्रिनक्तिक अन्तरकालका निषेव किया है । इसी प्रकार मिध्यास्, ग्थारद्‌ कपाय अर नौ नाकपायोकं विपये जान तना चादिप, क्योंकि इनकी त्तपणाके अन्तिम समयम दी जघन्य प्रदेशविभक्तिप्राप्रदाती ह । सम्थक्त्व आर सम्य्मिध्यात्व य उद्रलना प्रकृतियाँ हैं, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय आर उत्कूष्ट अन्तर कुछ कम अपुद्‌ गलपरिवनेनप्रमाा वन जानेसे बह. उक्त प्रमाण द । अनन्तानुबन्धी- चतुष्क भिसंयाचना प्रकृतयो हैं, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशषिमक्तिका जघन्य अन्तर चअन्तमुंहूत आर उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दा छथासठ सागर वन जानेसे वह्‌ उक्तं प्रमाण है । लाभगंज्वलन की जघन्य प्रदेशविभक्ति एक समयमात्र दाकर भी अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है, इसलिए इसकी अजधघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य रीर उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। तथा सम्यक्त्वादि इन सब प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्ति क्षपणार्के समय दी दाती है, इसलिए




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