मार्कोपोलो का यात्रा विवरण | Markopolo Ka Yatra Vivran

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Markopolo Ka Yatra Vivran by श्री रामनाथ लाल सुमन - Shree Ramnath Lal Suman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का यात्रानविवरण तातार के दरबार में चलें । दूत को आशा थी कि किबलाई खां लन्हें देखकर श्रंसन्न होगा और ये दोनों यात्री मालामाल हो जायँगे। दोनों यह समम कर कि इस काये से स्वदेश जाने में सुविधा होगी जाने के लिये तैयार हो गये और कुछ अन्य इंसाइयों को साथ लेकर जो कि वेनिस से उनके साथ आये थे उस दूत के साथ रवाना हुये छौर एक वर्ष की यात्ना के बाद शाइन्शाह तातार के दरबार में जा पहुँचे । सामने उपस्थित होते पर बादशाह उनके साथ बड़ी प्रसन्नता से मिला । उसने बहुत सी बातें चन यात्रियों से पूछीं । जैसे--पश्चिमी देशों का दाल कैसर रूम और न्य बादंशाहों की साम्राज्य-व्यवस्था तथा युद्ध की प्रणाली । यह कि उनमें कैसी सुलह- न्याय और मेल जोल पाया जाता है । रूमियों के आचार-बिचार किस प्रकार के हैं । पोप का कैसा अ्रभुख है। मास्टर निकोलो और एम-मीजियों दोनों यात्रियों के नाम हैं बड़े चतुर थे । उन्होंने इन सब बातों का उत्तर बड़ी उत्तम रोति से स्पष्ठता-पूबंक दिया । सम्राट उन्हें प्राय दरबार में जुलाया करता था क्योंकि यूरोप के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिये बह अत्यन्त उत्सुक था। दोनों यात्रियों के उम्तरों के सुन कर उसे बहुत कुछ जानकारी होगई । थोड़े ही दिनों में उसे रूस की परिस्थिति का पूर्ण ज्ञान हो गया । बाद्शाद अपनी प्रजा को बक्ुत्व कला ज्योतिष साहित्य व्याकरण गणशित प्रकृति विज्ञान और पदार्थ विज्ञान इत्यादि की शिक्षा देना चाहता था ओर ये विद्यायें योरोप में बहुत कुछ चुकी थीं अतएव उसने इरादा किया कि दोनों यात्रियों को पोप की सेवा में दूत की भाँति भेजे । इसलिये उसने अपने सभासदों से सलाह करके दोनों को अपने एक सरदार चगताल के साथ रवाना कर दिया कि अपने साथ बहुत से यूरोपियन घिट्वान लाये




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