पृथ्वीराज रासो भाग 1 | Prithviraj Raso Vol. - I

Prithviraj Raso Vol. - I by चंद बरदाई - Chand Bardaiमोहनलाल विष्णुलाल पंडया - Mohanlal Vishnulal Pandeya

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मोहनलाल विष्णुलाल पंडया - Mohanlal Vishnulal Pandeya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का सचांपच । कक 2 ८ एप्ठ ४ शात्त का यद् समाचार सुर कर क्लोध करना ॥. ... कर दर कर धर ुसेन फ्रा शाह दी घात न मानना भार शाद् का श्राज्ञा देना कि या तो मेंरा राज्य छाड़ दा नद्दीं मार ॥ ०० न्न्० ००० न ६ सीर हुरेन का देश छोड़ कर परिलार श्राद्ध के साध नागार की शोर झाना ॥ इक 5८५ ७ मीर का एथ्लीराज के यहां श्राना ॥ मत मे डर ८्मोर हसेन का भ्राठर के साथ एथ्लीराज का घलाना श्रार मोर का घाक्रर सलाम सरना ॥ की € एथ्लीरान का शिव्हार खेलना श्राौर मोर छुसेन का सुंन्दरदास छा एथ्वीराज के पास भेजना ॥ ३८८ १० सुन्चर छाया छा स्थान देस्त्र कर मीर का डेरा डालना ॥... ८८ नी न ही १९ हरम ( स्त्रियां ) का ढेरा पीछे की श्रीर डालना ॥ डा चर ९४ सुन्दर दस का एथ्वीराल के पास ज्ञाना, एथ्वीराज्ञ का मीर का काशल समाचार प्रछना श्र उसका सब दाल क्रह्नना ॥ कर कस का था मन ९३ मेत्री, क्षेसास, चम्द, पुंडीर 'ग्रारि के। बनाकर एध्वीराज करा पछना क्रि क्या कर क्योकि दाने तरह विपत्ति दे एक 'शाच छा कप दुसरे शरयणा श्राए का न रखना धर्म विरुद्ध हे ॥. «.. 3८८ प्ष्ट चन्द का सलाद देना कि जेसे शरणागत दाने पर विप्ण भगवान मे मत्स्य रूप घर कर एथ्वी को श्रपनो.. ! सोग पर रदखा था वैसेद्दी श्राप भी कीजिए ॥ भर इस मी ९५ जिसे शिवजी गले में विप घारण किय दैं थेसे ही समीर को श्राप भी रख्िस ॥... डर 9६० ९३ सुन्दरदास से प्रूछना कि सब्र स्थियां तो सुख से हैं श्रार शाह से भकगड़ा दाने की वात व्या सच दे॥ ९७ सुन्दरदादास का कत्ना कि जूर की ऐसी णक्र पातुर बे पास थी उस यो! लेकर हुसेन यहां घाहन की शग्या में श्राया हे ॥ बन भर कार 2०० ९८ चन्द का एथ्वोराल की प्रशं्ता करना कि लीसे मारध्वज के यहां घ्राह्मण बनकर धशारया में गया, भगवान ने सिंध बन कर मांस मांगा, शरणागत करा चीर बढ़ाया, वसेही तुमने शरणागत का रखकर घन्रिय धर्म की रक्षा की तुम्हारे माता पिता धन्य दें गत + ९८ शाइददनुसेन का से मिलना, एथ्लीराल का झादर देना ॥ नस 3९६१९ शुसेन का दचिस की शोर नागार की लारगर देना ॥ पक दि न २५ एथ्लोराज का को घोड़े चाथी श्रादि देना झार दानां का परस्पर प्रेस बढ़ना ॥ « «८८. लि २२ शद्दाबुद्दीन का चार दुत अजमेर भेजना «८. बन नर 0] २६ एथ्लीराल का का केघल हासी, दिसार का पगना देना शार शिकार में साथ रखना. यद् सब 1! | *. समाचार दुतों का से कहना ॥ पर अमर | ४ प्राहालव्ठीन करा फ्ोध करना और श्ररवर्खां का एथ्वीराज के पास भेजना क्रि भला चाहा तो छा निकाल दे ॥ कि कि भस्म कस ९9 | २५ से कहना कि पश्चिले चुसेन के पास ज्ञाना लो वद्द पातुर को दे ठे तो हम चसा कर दगे, [|| जा चच करके न मान ता एथ्वीगाज के पास जाकर पत्र देकर समभाना ॥ का पं २६ तीन सा सवार शरीर रथ देकर भ्रबस्यां को रवाना करना ॥ नर कर्क चरण एप २० एक महीने में भरता का नागार पहुंचना ॥.. ... भर कद मम (1 २८ श्ररबखां का छुप्तेन से मिलकर समभकाना, छुसन का न सानना ॥ अल गे १. | २६ 'ग्ररखखां का एथ्वीराल के पास ज्ञाना ॥ कल अर अर मिमी 1 पर ३० एथ्वीराज छा सुनतान को कुशल ॥.... ... कसम गो ही हू ५ भ 3५ शरबय्ां का कन्तना कि छुसेनखां करा निक्राल देने के लिये सुनतान ने कहा हे ॥ कम चस्थ 1 । जञ२ फा संदेसा सुनकर एथ्वोराज का मुख लाल हागया भाहिं चढ़ गईं ॥ कर मर ही रे कमास ने डपठ कर घाद्दा कि शाय लागे। का घर्म सुलतान नहीं जानता इससे ऐसा क्रचता हे, हुसेन ' पृथ्वीरान्न के शरणागत हे, चत्री का धर्म उसे छोड़ने का नदी है ॥ ... अब 9४ कन्त चादान, गायेवराज चन्द, पुंडोर का भी यही करना भार सुलतान से लड़ने को श्ञम प्रस्तुत हैं यह चना ॥ «-«- हक बन न्न्न ३५ .फा झपना निरादर दाता देख उठ श्राना शरर ग़ज़नो का कूच करना तथा शहाबुद्वोन से सब समाचार कि न ३६ करके शट्टाबुव्दीन का सातारखां, श्ररबयां, मीरजमाम, कमाम, खुरासायां, रचनस चनयूां,




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