अच्छी हिंदी | Aachi Hindi

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Aachi Hindi by रामचन्द्र वर्म्मा - Ramchnadra Varmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का हर , ९ ] जिनका. पारस्परकि. घनिष्ट सम्बन्ध है ;. और जिनका ठीक-ठीक वर्गीकरण बहुत दी कठिन दे ।. यही कारण है. कि सारी सामग्री प्रस्तुत रहने पर भी मुमे यह छोटी-सी पुस्तक लिखने में तीन वर्ष लग गये । सभी प्रकरण दो-दो बार और कुछ प्रकरण तीन-तीन बार लिखने पड़े हैं । तिस पर नित्य मिलनेवाली नई-नई भूलें भी यथास्थान बढ़ाई गई हैं; श्रौर बहुत-सी बातें तो श्रगले संस्करण के लिए रख छोड़नी पड़ी हैं । फिर भी विषय- विन्यास की दृष्टि से मेरा पूरा-पूरा सन्तोष नहीं हुआ । इसके विवा अभी मैं इसमें और भी एक-दो प्रकरण बढ़ाना चाहता था | श्राशा हे, कि अगले संहकरण में वे प्रकरण भी आरा जायँँगे ; और इस पुस्तक में भी बहुत कुछ सुधार हो जायेंगे । भूलें सबसे होती हैं । सम्भव है, भुझसे भी इस पुस्तक में कुछ भू हुई हों । कुछ सिद्धांत स्थिर करने में मैं भूल कर सकता हूँ । दुसरों को भूलें सुधारने में भी कोई भ्रूल दो सकती है श्रथवा और कई तरद की भूनों को सम्भावना है । परन्तु मेरा मूल उद्देश्य सद्‌ है श्र मैं आशा करता हूँ कि विद्वान लेखक, पाठक और समालोचक मेरे उस उद्देश्य पर ही ध्यान रक्‍खेंगे। यदि वे इसमें कहीं सुधार या पण्वि्तन आदि की श्वावश्यकता सममें तो कृपया मुझे सूचना दें । मैं सबके विचारों से समुचित लाभ उठाने का प्रयक्न करूँगा । मेरी दृष्टि अरब बहुत ही क्षीण हो चली है; इसलिए इस पुस्तक में प्रफ सम्बन्धी बहुत-सी छोटी-मोटी भूलें रद गई हैं । उदादरणार्थ प्ृ० ५६ पंक्ति १९ में 'भी” और 'बैमनस्य' के बीच में 'मिल ही जायेंगे।* छुपने से छूट गया है । इ० १४४ पंक्ति ६ में 'पर” की जगदद “पद” छप गया है । इसी प्रकार की श्यौर भी भूलें हो सकती हैं । श्राशा है, उदार पाठक मेरी असमर्थता का ध्यान रखते हुए इसके लिए मुम्हे च्षामा करेंगे । ः अन्त में मैं श्रपने उन आदरणीय मित्रो को घन्यवाद देना अपना कत्त व्य समता हूँ, जिन्होंने इस पुस्तक की पांडुलिपि के कुछ अथवा श्रघिक भंश पढ़कर मुझे उत्साहित किया है श्रौर श्रनेक उपयोगी परामर्श तथा सूचनाएँ दी हैं। इनमें शीयुक्त बा० सम्पूर्णानन्द जी, पं० बाबूराव जी पराड़कर, पं०




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