चार यार | Char Yaar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चार यार ५१
अत्रिराम गतिक येग साकार हो रहा था--न्िस गतिका मुह
असीमकी तरफ़ था और उसकी दक्ति अदम्य आर अमनिहत
थी | ऐसा लगता था मानो सागर-पारकी किसी परियोंफी कहामी-
के विदग-विदगी जाऊर अव्र यटा पंथ समेटकर जलपर सो रहे
हों; और जो इस ज्योलनाके साथ ही फिर अपने पंथ पसारकर
अपने देशक्रो ठीट जावेंगे । वह देद यूरोप हे । जो यूरीप हम तुम
आँखोंसि देख आये हैं बट यूरोप नटी, यर्कि चट फविफ़र्यिन
राज्य जिसका परिचय मैंने यूरोपीय साहिन्यमें पाया था । इस
जहाजके इगितसे वहीं परियोंकी कटानोका राज्य, की रूपका
राज्य, मेरे सामने प्रत्यक्ष हो उठा । मैने उपर आँख उठाकर देखा
करि समस्त अक्रमे जाग नेममिन हायाने आदिकं गुचः
गुन्छें ख़िद उठे है, श्र रदे हि और चारों तरफ़ द्वेन पुष्पी
गृष्टि हो रटो दे । उन एृल्यने पेद्-पीये सव देक द्विय ट, य पकी
फॉकॉर्मस घासपर झर रहे € ओर राह-पाट सब कद देक दिया
है। इसके याद मुझे सनमें एसा लगा मानों आज रामकों फिसी
मिरांटा या डेसटिमोना, चीटिस या टेसका दर्शन पाउँंगा और
उसके स्यध्मि धै मजीवति उरगा, जाग उूंगा और जमग्हों
जाउँगा । मैंने फरपनाफी आस सा देखा दि मेथी घटी चिर-
आफंक्ित इंटरनल पेमिनिन समरीर दूर लड़ी हुई मेरे दिए प्रनोशा
फर रही हूं ।
मींदफी सुमारें सनुप्य निस प्रकार सीधा एक ही. सरप;
चरता ला जाता दं, उसी प्रद्धार में भी चलने-चस््ते जद साठ
रास्तेफे पास जा पहुँचा तथ पया देखता हैं कि दूर मानो षष
छाया रहठ रही हूं। नें उसी तरफ पड़ने लगा । पीरे-भीरे बह
User Reviews
No Reviews | Add Yours...