मानव जाती का संघर्ष और प्रगति | Manavajati Ka Sanghars Aur Pragati

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Manavajati Ka Sanghars Aur Pragati by चन्द्रगुप्त विद्यालंकार - Chandragupt Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जमनी की सहमति... १५ पर्तु य १० सदस्यों को उपसमिति भी शं बोभल-सी सिद्ध'हुई । कामकाज की रक़ार बहुत ही मल्द थी । राष्ट्रपति विल्सन तो इस उपसमिति के भी पक्ष में नहीं थे कि एक दिन विल्सन की श्ननुपस्थिति मे लायडजाजं ने सत्धि-परिप्दू से यह प्रस्ताव स्वीकार करा लिया कि रूप-निर्माण का सारा कार्य बिल्सन, लायड जाजे, क्लीमेन्शो और शोरलेण्डों पर ही छोड़ दिया जाय । इन चार व्यक्तियों मे विल्सन क स्थिति सब से अधिक निराली थी । उन्हें पना एक भी समर्थक नज़र न भ्राता था | लायड जां जनी सै मिलने बाले जनि के विभाजन . तक ` की पूरी सीम पहले से बना चुके ये ] इटली फे प्रतिनिधि मि० श्नोरलेर्डो.का सारा ध्यान उसी बात की आर केन्द्रित था कि इटली को एड्रियाटिक अवश्य मिले । क्लीमन्शो को एकं ही धुन थी कि जमंनी पर कृतई विश्वास न किया जोय । उसे कुचल दिया जाय, इतना अधिक कुचल दिया जाय कि ` बह फिर कभी सिर न उठा सके । परियाम यदद हुआ कि मि० विल्सिन के १४ सिद्धान्तों की ओर किसी ने ध्यान ही नददी दिया । जर्मनी से पूरा बदला निकालने की भावना को लेकर सत्थिपत्र तेयार फिया ` ग्या श्लौर उस पर हस्ताक्षर कराने के लिए अमेनी कै प्रतिनिधियों को वरस बुला मेजा गया । जमेनी की सहमतिं--प्रजातन्त्र जर्मनी के परराष्ट्र सचिव का नाम था, काउण्ट बौकडाफ़ राजू । अपने कुछ सहकारियों के साथ वह वर्साई पहुंचा । ये लोग अपने भाग्य के सम्बन्ध मे अभी तक कुछ भी नदी जानते थे । ७ म १६१६ को ज्मनीके ये सव




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