वर्त्तमान एशिया | Varttaman Ashiya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
399
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वसमान एशिया ` ४
इसके तीन बरस वाद् शरंगरेजोने रूसके साथ जो सममतौता
किया, उसका तात्पये भी यहीं था कि भारत तक पहुँचनेके मार्गों-
की रक्षा हो । रूस उधर फारसमें बहुत कुछ बढ़ गया था, श्रफ-
गानिस्तानकी सीमा तक भी पहुँच गया था झौर तिव्बतमें उपद्रव
खड़ा करना चाहता था । इसी लिए १९०७ में श्रैंगरेजोंको रूसियोंसे
सम्धि करनी पड़ी । इसके उपरान्त और भी कई वर्षोतक अँगरेज़
लोग भारतके जल श्र स्थल मार्गोकी रक्षाका प्रबन्ध करते रहे:
और अन्तमें गत महायुद्धके कुछ ही पहले श्रेगरेजोंका उदेश्य
पूण रूपसे सफल होना चाहता था कि इतनेमे जमेनीने युद्ध ठान-
कर बीचमें बाधा खड़ी कर दी । पर इस युद्धमे भी इस टष्टिसे अँग-
रेजोंकी पूण विजय हुई कि समस्त दक्षिणी एशियामें, भूमध्य
सागरसे लेकर प्रशान्त महासागर तक, उनका अधिकार यथेष्ट
सद् हा गया।
जल-मागसे भारतकी रक्षा करनेके लिए अँगरे जोंने पश्चिममें
अरब सागर पर, पूवमें बह्ालकी खाड़ी पर तथा भारतीय महा-
सागरसे इन सब स्थानों तक पहुँचनेके और सब मार्गों पर पूर्ण
रूपसे अपना अधिकार करना निश्चित किया । अँंगरेज लोग सारे
समुद्रो पर अपना पूरे श्राधिपत्य इसलिए चाहते थे कि जिसमें
टापू हमारे क्ाथसे न निकलने पावें; श्रीर ्ररब सागर तथा स्याम-
की खाड़ी तक पहुँचानेवाले जलडमरूमध्यों पर इसलिए झधि-
कार रखना चाहते थे कि जिसमे उनके तर परके देश हमारे हाथ-
से न निकल जायें । लन्दन और लीवरपूलसे लेकर हांगकांग तक-
का प्रदेश और समुद्र केवल जहाजी बेड़ोंसे ही रक्षित नहीं रह
सकता था; इसलिए अंगरेजों ने समुंद्रमें दूसरी आरके अनेक स्थानों
पर भी दृदृतापूरवेक अपना अधिकार जमाया । भारतके पश्चिमी
मागे पर जिन्नाल्टर, मार्टा, साइप्रस, मिस्र, अदन, पेरिस श्नौर
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