निर्मायता | Nimaryata

Nimaryata by किशोरलाल घनश्यामलाल मारारुषाला - Kishorlal Ghanshyamlal Mararushala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ हररोज़ अँघेरेमें रहते और अँधेरेमें ही आते-जाते हैं । सैकड़ों घर्रोंमें चिराय नामकी कोओी चीज़ दी नहीं होती । कितने शॉबोंमें रातको सड़कों पर अुजेला मिलता है ? रखवाले लालटेन लेकर खेतोंकी रखवाली करने नहीं जाते । लोग नंगी ज़मीन पर, बिना चादर या कम्बल व्ये दी सोते हैं । फिर भी अनमेंसे कितने लोगोंको और क्रितनी बार अधिरेमे किसी दुघटनाका सामना करना पड़ा है, या सौंपने डैंसा है, बिच्छूने काटा है, अथवा चोर-डाकुओंने लूटा है? जितनी दुर्घटनायें योज्ञ मोटरकी सुननेमे आती दै, अुनके मुक्राबले साप-बिच्छरके काटनेकी या चोर-डाकूके लृटनेकी संख्या कितनी है ? तिस पर भी कितने आदमी हैं, जो मोटरकी दुघटनाओंसे डरकर अुनमें बैठना या. अुनकी दौोड़-धूपवाले रास्तों पर चलना छोड़ देते हैं ? गुजराती परिवारोंमें प्राजिमस द्टवकी छोटी-बढ़ी दुघटनाऑको आँखों देखने या स्वयं अनुभव करनेके अुदाइरण स्ट्वका अुपयोग करनेवाले हर घरमें मिल सकते हैं । बम्बआऔीके सहृदय कोरोनर साहबको तो न जाने कितनी बार स्टवका अुपयोग न. करनेकी सलाह देनी पड़ी है । फिर भी स्वभाव ही से भीरु मानी जानेवाली ये. बहनें अुसका अुपयोगं करते नहीं डरतीं । कारण, कल्पनामें सिन सबका जितना भय मालूम होता है, झुतनेके लि सचमुच अनुभवका कोञी आधार नहीं । ॐ अपरके भिस विवेचनसे हम भयछत्ति ओर भिच्छादाक्तिके भोतिक स्वख्पका कुछ अंदाज़ लगा सकते हैं । टेलीफोनका अपयोग करनेवालोंने अकसर यद्द अनुभव किया होगा कि जिस नंबरको जोड़नेके लिजे हम डायल घुमाते हैं, वह नम्बर तो नहीं जडता, ओर अंसके बजाय दूसरा ही कोओ नम्बर जुड़ता रहता है । कभी-कभी यह भी अनुभव होता दै कि हमें कनसींगे ( रिसीवर ) में दूसरे किनं दो आदमिर्योके बीचकी बात सुनाओी पड़ती है, ओर कभी-




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