संस्कृत काव्य में नीति - तत्व | Sanskrit Kavya Me Niti - Tatva
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.09 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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No Information available about डॉ. गंगाधर भट्ट - Dr. Gangadhar Bhatt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कि नर सम्बन्धी एव व्यावहारिक ज्ञान इस सामाजिक प्रवृत्ति को सुन्दर एव सफल बनने मे सार्थक होता है । जीवन के विकास के साथ ही साथ नीति का भी स्वत. विकास हुआ है । यही कारण है कि जीवन के वंविध्य के श्रनुरूप ही नीति की उक्तियो में विविधता के दर्शन होते हैं । नीति के सार्वकालिक महत्त्व के साथ ही स्थान देश काल पान के कारण उसभे यथा समय परिवर्तन एव विभिन्नता हष्टिगोचर होती है । नीति के विभिन्न स्वरूपो एव कभी-कभी विरोधी स्वरूपो को प्रस्तुत करने को दिशा में यह प्रथम प्रयास है । तृतीय परिच्छेद मे नारी समाज एवं नंतिक श्रादशें के रूप मे नारी का स्वरूप उसका सामाजिक स्तर एवं उसके विविध रूपों को क्रमवद्ध झध्ययन के रूप मे प्रस्तुत करना यहाँ प्रमुख लक्ष्य रहा है। पुरुष की सहयोगिनी गृहस्थ की प्राण मित्र के समान परामर्थदात्री गृहलक्ष्मी श्रादि नामो समाहत की जाने वाली भार- तीय नारी के विविध स्वरूपो एवं पक्षो के निरूपण से नारी विषयक नैतिक श्रादर्शों का रूप वेविध्य प्रस्तुत करने का यह एक प्रयास मात्र है। साथ ही पत्ति- पत्नी सन्तति श्रादि महत्त्वपूणं विषयों पर भी सामा्य श्रध्ययन यहाँ उपलब्ध हो सकता है । चतुथे परिच्छेद का प्रमुख लक्ष्य राजनीति सम्बन्धी विवध पक्षो का सम्यक् निरूपण करना है । राजा का स्वरूप उसके कत्त॑व्य एवं दायित्व शासन व्यवस्था युद्धनीति राजा एव प्रजा के पारस्परिक सम्बन्ध बात्रु एच मित्र श्रादि राज्य से सम्बन्धित विषयों पर विवेचनात्मक भ्रध्ययन इस परिच्छेद में प्रस्तुत किया गया है। साथ ही राजनीति के नाना चिविध सिद्धान्तो के प्रतिपादन की दिशा से भी सकेत किया है। घर्म प्राण भारत देश की राजनीति भी धमें के विविध सिद्धान्तो से सकलित है । यही कारण है कि भारतीय युद्ध नीति मे सर्वेत्र युद्ध का श्राघार सेतिक नियम है । पब््चम परिच्छेद मे धर्म एव दशेन के श्रस्तगंत धर्म नीति के विविध तत््वो का भ्रध्ययन्त प्रस्तुत किया गया है । धर्म की परिभाषा एवं स्वरूप का विवेचन करते हुए ईश्वर ग्रु आत्मा ब्रह्मा एव मोक्ष श्रादि विविघ विषयों पर नीतिकारो का हष्टिकोण यहाँ प्रस्तुत किया गया है । साथ हो सत्य श्राहिसा जैसे विषयों पर भी विहज्म हथ्टिपातत किया गया है । श्रस्त में उपसहार के रूप मे पुरे श्रध्ययन का निष्कर्ष सक्षेप मे दिया गया है । इसके अतिरिक्त रामायण काल से लेकर वततेमान काल तक के समाज का
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