भक्तमाला | Bhaktamala

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Bhaktamala by कृष्णचंद्र - Krishnachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राणरापिकादली ड 2 अथ अथारल्मः। [०“जय वूसुदेवकुमार, सनव ईंड्रियकर्मपर ॥ सब सुंतनआधार, अतिकोमछठकरुणायतन्‌ ॥ हुरबर हरतू सभा, निजश्रणागतजननको ॥ मावत अं तुम्हार, करतअभय संसारते ॥ २ नावत्‌ जो नहि आहि, तडि जनावतउररिशच जाने देतू निाहि, को कृपाछु यदुनाथसभ॥ ३ यह जग द्रैसार, जगत और भागवत बिनमागवतविदार, पिठतनमंगवतपदकतरेँ। जयजय सुतसभाज, जेहि सवत्‌ एधरत्‌ दक्ख शरण परथो रघुराज, ठाज तिहारे हाथ है (० शारदचनइव ज्या।तू, जयजबसातुसरस्वता कूपातकेर, रे, सोइउत्रतकावृताजडाथु ॥६। सु०्-जानों नहीं कछु छंदनकी गति सा साहित्येकी और न चीन्छों॥ [यव्याक्रणादिक श्चान्ख बदा इनम वहू कष दना । तेरे भरोषठ शे जगदंब कछू रचनागाते हा गाइलन्हां | दे अप तोहि पथार सब रघुराजक जाजकों रक्षण दादी! (€ ~< ९इ यथ सः अनह अइ १॥ न अपना ( | प | रनायं बैठिके, कियोमातु मतिशाम ॥ ७॥ ॥ तथा यथररशाधछा, बृ&। दरण दा ६२६५ | सारसनामें बैठिके, दीजे माहुं बनाइ ) छप्पून-विचनहरन जनसारन घरनसुस दृरनदृर्दिन नरन करन आयरन ज्ञान्रवृरनहु झूदन ठुरव पशु अवभीत्ति जंगतपूरण संचाएन ! 0... कशणादरन अबादान विपत्‌ वदन्‌ ८ (22222222




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