अमेरिका की संस्कृति | America Ki Sanskriti

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America Ki Sanskriti  by कृष्णचंद्र - Krishnachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्कृति का स्वरूप ६ जाती है ्रीर वे वहतत चिडचिडे हो उरते ई श्रौर भ्रालोचना करने लगते है । श्रमेरिकन लोग इस दोपका एक वडा उदाहरण हैं शरीर उनके वारेमे विदेशो मे श्रक्मर यह कहा जाता है कि वे प्रमेरिकनदढग का भोजन, विस्तर श्रीर गाडियाँ न मिलने की शिक्रायत करते रहते हूं । लेकिन यह वात नहीं है । अगर भ्रमेरिकिन लोग श्रपने देन श्रौर अन्य देशो के वीच भिन्नत्ता ग्रौरं श्रन्य देगों की विधिष्टता को देखने के लिए बाहर नही जाते तो फिर श्रौर किस लिए जाते है ? लेकिन विदेशो मे जाकर श्रालोचना श्रौर दिकायत करने वाले ये अमेरिकन लोग श्रपने देश मे किसी भी प्रकार की श्रालोचना को सुनना नहीं चाहते । इसीलिए प्रपने देश मे श्राति बले विदेशियों को वे प्यार करते है, उनका झातिथ्य-सत्कार करते है श्रौर उन्हें श्रमेरिकन जीवन के सौन्दर्य श्नौर सुख-सुविधाश्रो का ग्रनुभव कराते है । लेकिन बे किसी भी तरह की श्रालोचना पसन्द नही करते । श्रमेरिका में जाकर जब कोई व्यवित कोई श्रालोचना करता है तो हमेशा लोग यही कहते है कि तब ये भ्रालोचक लोग जहा से श्राये ६, वही लौट बयो नही जाते ? दो विभिन्न सस्छृतियो के लोगो मे एक दूसरे को समभ सकने यी क्षमता के इस अभाव को देख कर लगता है कि लोगों के विदेश यात्रा करने का एक कारण गायद यह है कि वे विदेशों में जाकर श्रपने मन को यह समभाने का यत्न करते है रि श्रपना देश ही सवते ग्रच्छ है। इस तरह तये परिवेश ग्रीर नई परिस्थितियो की श्रालोचना करना यात्रा का एक भ्रनिवायं ्रग है, वत्कि उसका श्रमिक धिक्षाप्रद शभ्रगहै। विदेशो मे जाकर वहा कौ विभिन्नताभ्नो कौ प्रालोचना करने का एक कारण शायद यह भी है कि झादमी को घर की याद संत्ताती है, उसे लगता है कि अपने देश के, श्रपने घर के, सुरक्षित श्र निरापद श्राश्रय से टूट कर वह्‌ दुर जा पडा ह श्रौर उसे यह्‌ भय होता है कि कही वहाँ वह श्रस- फल न हो जाए। यह झ्रालोचना यात्री की आन्तरिक भ्रनुभूतियों को




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