स्वामी दयानन्द सरस्वती का निजमत | Swami Dayanand Saraswati Ka Nijamat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
66 MB
कुल पष्ठ :
552
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गंगाप्रसाद शास्त्री - GANGAPRASAD SHASTRI
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ < +
पर्णक श्रन्तके एलोकोये कटी जायुकी ( सण १२ रतै ५८)
उसका पुनस्त दोषते वणन करना राद्धिखाव्यको दूषि
करना है प्रतपव चतुदश सभं प्रक्लिप्त ही समम्पना चाहिए-
प्रत्येक मनुष्य जानत्ता है क्वि राजा दशरघ पुति यक
कर रहेथे पु्रेप्टि यज्ञम झश्व मारकर हवन करना किसीमें भी
नहीं माना है-झोर न श्रश्वप्रघ पुत्र प्टि यज्षका कोई अंगही है
“महाभारत के बनपथ में रामोपास्यान हैं उसमें समस्त रासचारित हैं
परन्तु बहा रामचन्टरजी कै जन्मके न्तियि आशिष्ये दर
कागद पुरि का वणन नहीदं ' ( महा० मीमासा० पृण २५ ।
तच श्रषएवमार करर हवन करने का प्रकरण *४सें सर्ग द्वारा
मिला दना किसी घर्मद्रोहों दुरात्ता के दुरूलाहू नके सिवाय
ऋर कया कह सकत हैं यज़ुबंद्म स्पष्ट लिखा है--
योउवन्त॑ जिघांसति त८भ्यमीति वरुण: परी मत्त! पर: ;
श्वा (यजुर्बद् ८२।५)याो ऽकेन्तःश्वं जामते हन्तुपच्छनिं
चरूणाः तपश् (नव्रासन्नपरन्ययान रस स्म सठापर मपाष्य |
जो श्रवन मारना चाहता है उप चस्या म करका)
शोर चह मनु रकन इते तर् पमान हस्ता हैं
सके श्रतिरित्द शास्त्रों एफ गो , शब्द छाल थि का एसपए
चाची श्राता ऐ-उपका झध भी इन वास दाकोने “गांहु स्तियस्मों
शति गोधः सनिधि। अाधात गाग {तिस सजि मारौ शय उ
मोघ्रया श्रतिभशि कते 3-तस्या [दो र -परन्तु यह् इनक)
ज्ञान अथवा वक्षन वासिनि निनि श्वामुच रम हन् धानु
हिंसा श्र गति ( ज्ञान गमन पापि ; थते लिस्ताएँ इस्ललिए
गप्र शस्दक्म अथर मिय जिसको कार! पाप्त को जाय अ्रधथात |
रखनी पड़े उसे गोघ्न कहटतदहं परिनि मुधिने स्तयं श्रद्राध्याशः
मेलिखा दै “उप्र श्राध्रयेःः (श्रए्ा०२।२।८८) यहं उप शब्दकः
User Reviews
No Reviews | Add Yours...