भूदान गंगा भाग - 3 | Bhudan Ganga Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अर्हिसायुक्त फर्मयोग ९५
है कि उमे अगर जमीन मिलती है, तो वह अपनी जमीन पर तो काम करता ही
जार आपकी मूमिपर मीकाम करेगा | उसे मन्द्र में हिस्सा भी देना पड़ेगा |
वट उमेप्यारमे दगा; तो वट आपकी जमीन पर भी अत्यत छकृतनता सेकाम
करेगा ।
स्किन एक चात्ति हम कयृल कस्ते टै कि कायम के लिए, रोज क्यामत तक
-मापफ खेत पर मजदूर काम करने के लिए आये--यह नहीं होगा | आपको अपने
-ल्ठककोखेती क्रा काम; खेती की उपासना स्खिनी होगी । आज लोग जमीन
के माह्क चनते और गहर से रहते हैं । जमीन गाँव मे पटी है, उसे देखते भी
नहीं । हम कहते हैं. कि अगर वे जमीन का दान कर ढ, तो सभी दृष्टियी से
कल्याण होगा । जब मजदूर दूसरों के खेता में जाते ह, तो उन्हें पुरी मजदूरी
नहीं मिलती | इसलिए वे काम भी प्रा नहीं करते । सुध्किल् से ८ घटे में ४
घटे का काम वरते है । मजदूरों के हाथ में काम है, तो वे काम की चोरी करते
है और माल्कि के हाथ में दाम है, तो वह दाम की चोरी करता हैं । ठोनो एक-
दूसरे को ठगते और दोनो मिलकर देग को ठगत है। परिणाम यह होता है
फि हमारे देन की फसल कम होती है । हमारा कहना ठ कि गदान से हिंडस्तान
मे ल-मीव्रदेगी; प्रीति वेगी} जल ल्मी, चक्ति. प्रीति, तीनों सा जायें,
यहाँ दुनिया मे ओर कोन सी चीज प्राप्त करने की रह जायगी ?
चनसुःरेया
कद वि
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