भूदान गंगा भाग - 3 | Bhudan Ganga Bhag - 3

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Bhudan Ganga Bhag - 3 by विनोबा - Vinoba

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अर्हिसायुक्त फर्मयोग ९५ है कि उमे अगर जमीन मिलती है, तो वह अपनी जमीन पर तो काम करता ही जार आपकी मूमिपर मीकाम करेगा | उसे मन्द्र में हिस्सा भी देना पड़ेगा | वट उमेप्यारमे दगा; तो वट आपकी जमीन पर भी अत्यत छकृतनता सेकाम करेगा । स्किन एक चात्ति हम कयृल कस्ते टै कि कायम के लिए, रोज क्यामत तक -मापफ खेत पर मजदूर काम करने के लिए आये--यह नहीं होगा | आपको अपने -ल्ठककोखेती क्रा काम; खेती की उपासना स्खिनी होगी । आज लोग जमीन के माह्क चनते और गहर से रहते हैं । जमीन गाँव मे पटी है, उसे देखते भी नहीं । हम कहते हैं. कि अगर वे जमीन का दान कर ढ, तो सभी दृष्टियी से कल्याण होगा । जब मजदूर दूसरों के खेता में जाते ह, तो उन्हें पुरी मजदूरी नहीं मिलती | इसलिए वे काम भी प्रा नहीं करते । सुध्किल् से ८ घटे में ४ घटे का काम वरते है । मजदूरों के हाथ में काम है, तो वे काम की चोरी करते है और माल्कि के हाथ में दाम है, तो वह दाम की चोरी करता हैं । ठोनो एक- दूसरे को ठगते और दोनो मिलकर देग को ठगत है। परिणाम यह होता है फि हमारे देन की फसल कम होती है । हमारा कहना ठ कि गदान से हिंडस्तान मे ल-मीव्रदेगी; प्रीति वेगी} जल ल्मी, चक्ति. प्रीति, तीनों सा जायें, यहाँ दुनिया मे ओर कोन सी चीज प्राप्त करने की रह जायगी ? चनसुःरेया कद वि




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