डॉ॰ कन्हैयालाल सहल व्यक्तित्व और कृतित्व | Dr. Kanhaiyalal Sahal Vyaktitv Aur Krititv

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
24 MB
                  कुल पष्ठ :  
584
                  श्रेणी :  
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              लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।
'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।
सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डॉ० कस्हैयालाल सहल : व्यक्तित्व श्रौर कृतित्व छ
उनके निन्वध-संग्रहो--श्रालोचना के पथ पर, 'समीक्षायणा , “विवेचन, विमशं श्रौर
व्युत्पत्ति , शल्यांकनः, “अनुसंधान श्रौर श्रालोचना” का श्रषना महत्व है । साकेतः
श्रौर 'कामायनी” सम्बन्धी समीक्षा-ग्रथों में व्याख्यात्मक समीक्षा की विशेपताग्रों का
उत्तम निदान मिलता है। श्रध्ययन की गंभीरता, ठुलनात्मक दृष्टि, विवेचन की
मौलिकता श्रौर कश्ैली-सौष्टव का इन कृतियों में सहज श्रन्तः प्रसार है । कृति की
सम्यक् व्याख्या उत्तम श्रालोचना की पहली शर्त है, श्रालोचना की श्रन्य प्रणालियां
इसके उपरान्त ही उभर पाती हैं । श्रतः मंथिलीदरण श्रीर प्रसाद की काव्य-गरिमा को
उद्घाटित करने वाले ग्रंथों में डॉ० सहल की इन दोनों रचनाशं की प्रेरक भूमिका
स्वीकार की जानी चाहिए ।
डॉ० सहल वृत्ति से श्रष्यापक है, फलस्वरूप उनकी श्रालोचना-रोली में क्रम-
बद्धता ग्रौर तत्त्वग्राहिता श्रनायास देखी जा सकती हैं । भावयित्री श्रौर कारयित्री
प्रतिभा की समान व्याप्ति के कारण उनकी समीक्षा-पद्धति में भावुकता श्रौर चितन
की स्वच्छता का सहज समन्वय सिलता है । उनके श्रालोचनात्मक निवंव ज्ञान-झुष्क
नहीं है, भ्रनुसंधान को मयदिा, विवेचन की तटस्थता तथा प्रतिपादन को सरसता
उनकी विशेषता ह । इस संदभं मेँ उनका विषय-निर्वाचन भी विविधतापूणं है । काव्य,
नाटक, साहित्यशास्त्र, भाषाविज्ञान श्रादि क्षेत्रों कौ सख्य समस्याश्रो, प्रवृत्तियों श्रौर
तियो का सर्वेक्षण एवं विवेचन उन्होंने मनोयोगपुवंक किया है । इनमें से काव्यशास्त्र
श्रौर भाषा-विनज्ञान मे उनको समान गति विदोषलूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि एक तो
इन दोनों पर समान श्रधिकार सवके वशकी वात नहीं है श्रौर दूसरे व्यावहारिक
श्रालोचना के मूलम भी इन दोनों कौ श्रनिवायं सत्ता रहती है । सत्यतो यह् है कि
काव्य प्रीर गद्यविधाश्रं के संवध में उनकी प्रालोचनात्मक सामग्री की विद्वदता का
श्रेय इसी विशेषता को दिया जाना चाहिए 1
काव्यद्ास्त्र की भारतीय परम्पराके साथ ही सहल जी पाश्चात्य . समीक्षा-
दर्शन से भी भली-भाँति परिचित हैं । उनके लेखों में काव्यशास्त्रीय दिवयों पर लिखित
निवंधों की संख्या ही अधिक है । भारतीय कान्य-सिद्धान्तों मे उन्होंने रस-विवेचन
में सर्वाधिक रुचि व्यक्त की है श्रौर मनोविज्ञान के संदर्भ में रस-सिद्धान्त के. कतिपय
पक्षो पर पुनविचार किया है) साधारणीकरण, रस-विध्न, करुण रस कौ सुखात्मकता
श्रादि के सम्बन्ध में उनकी -जिज्ञासाएं श्रौर उनका तकंपुष्ट समाधान इसका प्रमाण
है । अझरस्तुू, लौंगिनुस श्रादि पाइचात्य श्राचार्यों के काव्य-सिद्धान्तों के श्रवुशीलन में
भी उनकी रुचि रही है । काव्यशास्त्रीय चिन्तन में उनकी सहज प्रवृत्ति को लक्षितः
कर यह कहना श्रत्युक्तिपूर्ण न होगा कि यदि उन्होंने राजस्थानी साहित्य श्र संस्कृति
कै विश्लेषण, विवेचन तथा मूल्यांकन को श्रपने जीवन का ध्येय न बनाया होता श्र.
 
					 
					
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