नव जीवन | Nav Jeewan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
261
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नवजीवन ७
“हाँ, मुकदमा खड़ा जायगा । जिसने मेरे लिए अपना जीवन मोक.
दिया उसे मैं बिना लड़े जेल न जाने दूँगा । जबतक दम है लड़ँगा; और
फिर अपना बेटा तो है ही ।”
रामाधीन ने देखा, काका भावना के वश हँ । वह् एक वार भिभका; पर
भिमक ही मिमक में कद्दी रह न जाय, इसलिए सब साहस एकन करने
सगा।
यदि बच इस समय काका के प्रति सहानुभूति की भावना में बहू गया
ता कब और कहाँ किनारे लगेगा, यह नहीं कहा जा सकता ।
शरीर फिर नयन मूँदकर, समस्त बल लगाकर उसने कहा--“काका
अलग होना चाहता हूँ, मेरा.हिस्सा बाँट दो ।”
रामाधीन कद गया शरीर उसके शीश से एक भार उतर गया । पर अब
जब वह कह चुका तो एक भय उस पर छा गया ।
वह यह कह कैसे सका ? असम्भव सम्भव कैसे बना ?
रामाधीन के वाक्य काका पर बिजली से गिरे 1
उन्हें झपने कानों पर विदवास न हुआ । आगामी संघर्ष में “जिसे वे
श्मपना दाहिना हाथ सम रहे थे, वही अब उनसे छूट कर अलग हुश्या
चाहता हैं । प्रहार परं प्रहार । रामसरन की बिलखतौ नववधू ही उनके महान
कष्ट का पर्याप्त कारण है और अब रामाधीन लग होने की बात कर रहा है !
पहले उनमें ज्वाला उठी, पर दूसरे क्षण ही आँखों सें पानी आ गया।
उन्हें लगा कि वे अत्यन्त निरीह हैं । रामाधीन के पथक हो जाने पर वे क्या
करेंगे ? राससरन के लिए कैसे लड़ेंगे ! |
उन्होंने मुख फेर लिया। आँसू नथनों में एकत्र हो गये । पुत्र को अपनी
यद दुर्बलता दिखलाना न चाहते थे । खाट पर से उठ गये । जाकर बैलों
को भूसा,डाल शरोर भूस की धूत पचने के बहाने नयनां से आँसू पोंछे ।
इतने दिन मे उन्होने जो कमाया है उसे क्या वे आज परीक्षा के समय
खो देंगे ? विपत्ति मशुष्य पर ही आती है । वहीं विपत्तियों का आधार है।
उन्होने पश्चशमो की सेवा करते-करते अपना कत्तंव्य चिश्वित कर लिया । रामा-
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