नव जीवन | Nav Jeewan

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Nav Jeewan by रामचन्द्र तिवारी - Ramchandra Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नवजीवन ७ “हाँ, मुकदमा खड़ा जायगा । जिसने मेरे लिए अपना जीवन मोक. दिया उसे मैं बिना लड़े जेल न जाने दूँगा । जबतक दम है लड़ँगा; और फिर अपना बेटा तो है ही ।” रामाधीन ने देखा, काका भावना के वश हँ । वह्‌ एक वार भिभका; पर भिमक ही मिमक में कद्दी रह न जाय, इसलिए सब साहस एकन करने सगा। यदि बच इस समय काका के प्रति सहानुभूति की भावना में बहू गया ता कब और कहाँ किनारे लगेगा, यह नहीं कहा जा सकता । शरीर फिर नयन मूँदकर, समस्त बल लगाकर उसने कहा--“काका अलग होना चाहता हूँ, मेरा.हिस्सा बाँट दो ।” रामाधीन कद गया शरीर उसके शीश से एक भार उतर गया । पर अब जब वह कह चुका तो एक भय उस पर छा गया । वह यह कह कैसे सका ? असम्भव सम्भव कैसे बना ? रामाधीन के वाक्य काका पर बिजली से गिरे 1 उन्हें झपने कानों पर विदवास न हुआ । आगामी संघर्ष में “जिसे वे श्मपना दाहिना हाथ सम रहे थे, वही अब उनसे छूट कर अलग हुश्या चाहता हैं । प्रहार परं प्रहार । रामसरन की बिलखतौ नववधू ही उनके महान कष्ट का पर्याप्त कारण है और अब रामाधीन लग होने की बात कर रहा है ! पहले उनमें ज्वाला उठी, पर दूसरे क्षण ही आँखों सें पानी आ गया। उन्हें लगा कि वे अत्यन्त निरीह हैं । रामाधीन के पथक हो जाने पर वे क्या करेंगे ? राससरन के लिए कैसे लड़ेंगे ! | उन्होंने मुख फेर लिया। आँसू नथनों में एकत्र हो गये । पुत्र को अपनी यद दुर्बलता दिखलाना न चाहते थे । खाट पर से उठ गये । जाकर बैलों को भूसा,डाल शरोर भूस की धूत पचने के बहाने नयनां से आँसू पोंछे । इतने दिन मे उन्होने जो कमाया है उसे क्या वे आज परीक्षा के समय खो देंगे ? विपत्ति मशुष्य पर ही आती है । वहीं विपत्तियों का आधार है। उन्होने पश्चशमो की सेवा करते-करते अपना कत्तंव्य चिश्वित कर लिया । रामा- ४




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