अहिंसा तत्त्व - दर्शन | Ahinsa Tattv Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about उपाध्याय अमर मुनि - Upadhyay Amar Muni
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अहिसा तस्व-दर्शन नो
डालता है, तव वह र्या, देष भौर कठ्ह से ऊपर उठ जाता)
जव वह् मनासवत होकर श्रद्धापरवंक आत्म-पोघन की प्रक्रिया
प्रवत्त हो जाता है तव वह मोक्ष पा लेता है। उसे शक च मी
इघर-उपघर होने की, मगल-वगल में गति बदलने की जरूरत नहीं
ई 1 वहं जहां हौ, वदी रहै, आत्मस्य रहे । वस्तुत वहीं मे ऊ्वै-
मूख जमृत्तफी धारा वह रही है ।” यह् सुनकर वे अजेन विद्वान्
हे मौर बोले फि ““मोक्ष-निद्धि के लिए बडे गजव फा रूपक है यह् ।”
तो मैंने कहा, “यह वनावट नहीं ह, बल्कि जंन तत्व-चित्तन की
अपनी एक विधेषता है ।”
जैन धर्म अहिसा की अमृत-गगा का पावन न्रोत अपनी
लात्मा के अदर ही ता है। यही मेरे कहने का सार था ।
वह गगा कौनसी है जो हमारे ही अदर बह रही है * वह
अहिंसा और सत्य की गगा है जो हमारी नस-नस में प्रवाहित हैं ।
यदि हम उस पावन गगा मे स्नान नहीं करेंगे तो हमारा जीवन
पतरित्र नहीं हो सकेगा ।
जीवन को पवित्र करने के लिए अहिसा एक जीवन गगा है,
जिसमे अवगाहन करने के वाद मानवता का सपूर्ण विकास हो जाता
हं मीर दम व शोपण का जो नकाव मानवता के सुदर चेहरे पर भाज
पड गया है, वह सहज ही फट जाता है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...